दिल्ली। महाराष्ट्र के मालेगांव में 29 सितंबर 2008 को हुए बम विस्फोट मामले में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की विशेष अदालत ने सभी आरोपियों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया है। इस घटना में छह लोगों की मौत हुई थी और 95 लोग घायल हुए थे। इस मामले में बीजेपी सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर, लेफ्टिनेंट कर्नल श्रीकांत प्रसाद पुरोहित, मेजर रमेश उपाध्याय (सेवानिवृत्त), समीर कुलकर्णी, अजय रहीरकर, सुधाकर द्विवेदी, और सुधाकर चतुर्वेदी सहित सात लोग आरोपी थे।
विशेष एनआईए अदालत ने अपने फैसले में कहा कि अभियोजन पक्ष यह साबित करने में विफल रहा कि मोटरसाइकिल पर बम रखा गया था। कोर्ट ने यह भी उल्लेख किया कि अनलॉफुल एक्टिविटीज प्रिवेंशन एक्ट (यूएपीए) के तहत मुकदमा चलाने के लिए आवश्यक मंजूरी नियमों के अनुसार नहीं ली गई थी, जिसके कारण यूएपीए के प्रावधान इस मामले में लागू नहीं किए गए। अदालत ने पाया कि अभियोजन पक्ष के पास आरोपियों की संलिप्तता को साबित करने के लिए पर्याप्त सबूत नहीं थे।
यह विस्फोट मालेगांव शहर में एक मस्जिद के पास हुआ था, जब एक मोटरसाइकिल पर रखे गए विस्फोटक उपकरण में धमाका हुआ था। प्रारंभिक जांच महाराष्ट्र आतंकवाद निरोधक दस्ते (एटीएस) ने की थी, जिसके अनुसार मोटरसाइकिल प्रज्ञा सिंह ठाकुर के नाम पर रजिस्टर्ड थी। बाद में, 2011 में यह मामला एनआईए को सौंप दिया गया। मुकदमे के दौरान 323 गवाहों की जांच की गई, जिनमें से 34 अपने बयानों से मुकर गए। एनआईए ने 2016 में एक आरोपपत्र दायर किया था, जिसमें प्रज्ञा ठाकुर और तीन अन्य आरोपियों को क्लीन चिट देने की सिफारिश की गई थी, लेकिन अदालत ने केवल तीन अन्य आरोपियों को बरी किया और ठाकुर को मुकदमे का सामना करने का निर्देश दिया।
कोर्ट के इस फैसले ने जांच प्रक्रिया और सबूतों की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए हैं। पीड़ित परिवारों के वकीलों ने पहले दावा किया था कि अभियोजन पक्ष ने संदेह से परे मामला साबित कर दिया था, लेकिन अदालत ने उनके तर्कों को स्वीकार नहीं किया। इस फैसले के बाद पीड़ितों के परिजनों ने निराशा व्यक्त की है, और कुछ ने जांच एजेंसियों की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए हैं। यह मामला लंबे समय से चर्चा में रहा है, क्योंकि इसमें प्रभावशाली व्यक्तियों पर आरोप लगे थे। कोर्ट के इस फैसले से न केवल न्यायिक प्रक्रिया पर बहस शुरू हो गई है, बल्कि आतंकवाद से जुड़े मामलों में सबूतों की मजबूती और निष्पक्ष जांच की आवश्यकता एक बार फिर सामने आई है।

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