रायपुर। छत्तीसगढ़ के सीमावर्ती जिले मोहला-मानपुर-अंबागढ़-चौकी (एमएमसी) में स्थित दक्कोटोला गांव आजादी के 78 वर्षों बाद भी बुनियादी विकास से वंचित है। यहां ‘मोदी की गारंटी और विष्णु का सुशासन’ के नारों के बीच ग्रामीण एक अदद पहुंच मार्ग के लिए तरस रहे हैं, जबकि राज्य सरकार के ‘सुशासन तिहार 2025’ अभियान के दावे हवा-हवाई साबित हो रहे हैं। प्रशासनिक लालफीताशाही और राजनीतिक वादों की खोखली नींव ने ग्रामीणों की पीड़ा को और गहरा कर दिया है, जहां बारिश के मौसम में कीचड़ भरे गड्ढों में फंसकर जीवन थम सा जाता है।
अंबागढ़ चौकी विकासखंड की ग्राम पंचायत खुर्सीटिकुल के अंतर्गत आने वाला यह गांव छत्तीसगढ़-महाराष्ट्र सीमा पर बीहड़ जंगलों में बसा है। यहां सड़क की अनुपस्थिति ने ग्रामीणों को दैनिक जीवन की जंग लड़ने पर मजबूर कर दिया है। ग्रामीण बताते हैं, “बारिश में तो एम्बुलेंस या कार का सवाल ही नहीं, पैदल चलना भी दूभर हो जाता है। कीचड़ और गड्ढों में फंसकर कितने बीमारों की जान जोखिम में पड़ चुकी है।” ग्रामीणों की आवाजें प्रशासनिक कानों तक पहुंचने के बावजूद गूंजती रह जाती हैं। स्कूली बच्चे शिक्षा से वंचित हो रहे हैं, बीमारों को अस्पताल पहुंचाना सपना सा लगता है, और कामकाजी लोगों की आजीविका ठप हो जाती है। यहां तक कि साइकिल चलाना भी असंभव हो गया है, जो ग्रामीण भारत की विकास यात्रा पर एक करारा तमाचा है।
भाजपा की विष्णुदेव साय सरकार ने सत्ता संभालते ही ‘सुशासन’ का ढोल पीटना शुरू कर दिया था। नगरीय निकाय चुनावों में ‘मोदी की गारंटी’ के सहारे वोट बटोरने वाली यह सरकार अप्रैल-मई 2025 में ‘सुशासन तिहार’ अभियान लेकर आई, जिसमें जनता की शिकायतों का त्वरित निराकरण का वादा किया गया। लेकिन दक्कोटोला के ग्रामीणों ने 14 अप्रैल 2025 को इसी अभियान के तहत सड़क सुधार की गुहार लगाई, जो आज तक अनसुनी पड़ी है। सुशासन तिहार के अंतर्गत इस गाँव के नोहरू राम, विनोद, अमृत और चिरंजीव ने आवेदन दिया था, उन्हें उम्मीद थी कि सुशासन तिहार में आवेदन का त्वरित निराकरण होगा तो उनके गाँव को सड़क की समस्या से निजात मिल जाएगी, पर ऐसा नहीं हुआ। इसके बाद पूरा गाँव दुखी, निराश और नाउम्मीद है। ग्रामीणों को लगता है कि सुशासन तिहार जैसे अभियान केवल सरकारी खानापूर्ति है, जहाँ उनका केवल आंकड़ों के लिए इस्तेमाल किया जाता है, राहत कुछ नहीं मिलती है।
सूत्रों का कहना है कि यह मार्ग प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (पीएमजीएसवाई) के कोर नेटवर्क से बाहर होने के कारण आवेदन को छत्तीसगढ़ ग्रामीण सड़क विकास अभिकरण (सीजीआरआरडीए) की ओर धकेल दिया गया। मुख्यमंत्री ग्राम सड़क योजना के अंतर्गत दक्कोटोला से खुर्सीटिकुल तक सड़क निर्माण के लिए 245.93 लाख रुपये का प्रस्ताव मुख्य अभियंता कार्यालय को भेजा गया, जिसमें दक्कोटोला-पाटन मार्ग भी शामिल है। लेकिन स्वीकृति की प्रतीक्षा में महीनों गुजर गए, और निर्माण कार्य की सुई टस से मस नहीं हुई। यह स्थिति राज्य प्रशासन की उदासीनता और राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी को उजागर करती है, जहां ‘सुशासन’ महज चुनावी जुमला बनकर रह गया है।
ग्रामीणों की यह पीड़ा न केवल विकास की असमानता को दर्शाती है, बल्कि आदिवासी बहुल क्षेत्रों में सरकारी योजनाओं की विफलता पर सवाल खड़े करती है। जबकि मुख्यमंत्री खुद आदिवासी समुदाय से हैं, फिर भी सीमावर्ती गांवों की अनदेखी जारी है। क्या ‘विष्णु का सुशासन’ सिर्फ शहरों तक सीमित है, या ग्रामीण भारत को अभी और इंतजार करना होगा? दक्कोटोला की कहानी छत्तीसगढ़ में प्रशासनिक ढिलाई की एक जीवंत मिसाल है, जहां प्रस्तावों की फाइलें धूल फांकती रहती हैं और जनता की जिंदगी कीचड़ में फंसती जाती है। राज्य सरकार से ग्रामीणों ने मांग की है कि त्वरित कार्रवाई कर इस स्थिति का समाधान किया जाए, वरना ‘सुशासन’ का नारा और खोखला साबित होगा। नीचे उस बदहाली का वीडियो देखिये :-

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