
“ॐ द्युतिलकाय नमः, ॐ द्विजराजाय नमः, ॐ ग्रहाधिपाय नमः…” – चंद्र देव के इन मंत्रों से गूंजती शरद पूर्णिमा की रात्रि, जहां आकाश का राजा अपनी 16 कलाओं से धरती को अमृत बरसाता है। छत्तीसगढ़ की हरियाली भरी धरती पर यह पावन पर्व न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि लोक जीवन की सादगी और प्रकृति के साथ गहराई से जुड़ाव को भी दर्शाता है। यहां की नदियां, जंगल और ग्रामीण परिवेश में यह पर्व चंद्रकिरणों की चांदी सी चमक के साथ मनाया जाता है। लेकिन इसकी जड़ें एक प्राचीन किवदंती में हैं, जो धन-समृद्धि और भक्ति की शक्ति को उजागर करती है। आइए, इस किवदंती की गहराई में उतरें और जानें कि छत्तीसगढ़वासी इसे कैसे धूमधाम से मनाते हैं, जहां कहावत है: “पूर्णिमा का चांद जैसे, वैसी भक्ति की छांव” – अर्थात् पूर्ण भक्ति से जीवन की हर कमी दूर हो जाती है।
किवदंती: साहुकार की बेटियों और चंद्रमा की कृपा
छत्तीसगढ़ के लोककथाओं और धार्मिक परंपराओं में शरद पूर्णिमा की कथा एक साहुकार की दो पुत्रियों की कहानी से जुड़ी हुई है, जो पूर्णिमा व्रत की महिमा को रेखांकित करती है। यह कथा न केवल धार्मिक ग्रंथों में वर्णित है, बल्कि छत्तीसगढ़ के ग्रामीण इलाकों में मौखिक रूप से पीढ़ी-दर-पीढ़ी सुनाई जाती है, जहां इसे “लड्डू वाली कथा” भी कहा जाता है।
कहानी इस प्रकार है: प्राचीन काल में एक धनी साहुकार था, जिसके दो विवाहित पुत्रियां थीं। दोनों बहनें हर पूर्णिमा पर व्रत रखती थीं, लेकिन उनकी भक्ति का स्तर अलग-अलग था। बड़ी बहन विधि-विधान से व्रत रखती—सूर्योदय से पहले स्नान कर, फलाहार पर रहकर पूजा-अर्चना करती और रात्रि में चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत समाप्त करती। वहीं, छोटी बहन आधी-अधूरी विधि से व्रत रखती, कभी भोजन ग्रहण कर लेती या पूजा में लापरवाही बरतती।
समय के साथ साहुकार की मृत्यु हो गई, और दोनों बहनों के पति अलग-अलग दिशाओं में व्यापार के सिलसिले में निकल पड़े। बड़ी बहन के पति सफल रहे, उनका कारोबार फला-फूला, लेकिन छोटी बहन के पति असफल साबित हुए। एक वर्ष शरद पूर्णिमा पर बड़ी बहन ने अपनी छोटी बहन को आमंत्रित किया। वहां पहुंची छोटी बहन ने अपनी बड़ी बहन को लड्डू भेंट किए, लेकिन बड़ी बहन ने उन्हें चंद्रमा की किरणों में रखे हुए अमृत तुल्य खीर का प्रसाद दिया। रात्रि में चंद्र पूजा के दौरान, छोटी बहन ने अपनी भूल स्वीकार की और व्रत की पूरी विधि सीखी। अगले दिन, चमत्कारिक रूप से छोटी बहन के पति को अपार धन की प्राप्ति हुई।
यह कथा छत्तीसगढ़ के बस्तर, रायपुर और दुर्ग जैसे क्षेत्रों में विशेष रूप से प्रचलित है, जहां इसे लोक गीतों और कथा-पाठ के माध्यम से जीवंत रखा जाता है। यह किवदंती सिखाती है कि शरद पूर्णिमा की रात्रि में चंद्रमा की किरणें अमृत के समान हैं, जो अधूरी भक्ति को भी पूर्ण कर सकती हैं। छत्तीसगढ़ की आदिवासी संस्कृति में इसे चंद्र देवता की कृपा से जोड़ा जाता है, जहां जंगलवासी मानते हैं कि इस रात चंद्रमा फसलों को उर्वर बनाता है। जैसी लोक कहावत है: “चंदा मामा की किरणें, अमृत बरसाती रैन” – अर्थात् चंद्रमा की किरणें जीवन में अमृत की वर्षा करती हैं।
शरद पूर्णिमा को कैसे मनाएं: छत्तीसगढ़ी परंपराओं के अनुसार उपाय
छत्तीसगढ़ में शरद पूर्णिमा को “कोजागरी पूर्णिमा” या “रास पूर्णिमा” के नाम से भी जाना जाता है, और यहां इसे लक्ष्मी पूजा के साथ कृष्ण की रासलीला की स्मृति में मनाया जाता है। दूधाधारी मंदिर (रायपुर) जैसे स्थलों पर ब्राह्मण समाज विशेष कार्यक्रम आयोजित करता है, जहां भजन-कीर्तन और सामूहिक पूजा होती है। लेकिन घर-घर में सादगी भरा उत्सव होता है। नीचे दिए उपायों का पालन कर आप इस पर्व को पूर्ण रूप से मना सकते हैं, जहां श्लोक और मंत्रों का जाप इसे काव्यात्मक बनाता है:
- व्रत और स्नान का संकल्प : सुबह सूर्योदय से पहले उठें और पवित्र नदी (जैसे महानदी या शिवनाथ) में स्नान करें। यदि संभव न हो, तो घर पर गंगाजल मिले जल से स्नान करें। फलाहार व्रत रखें—दूध, फल, नट्स और खीर ही ग्रहण करें। तामसिक भोजन (मांस, लहसुन-प्याज) से दूर रहें। यह उपाय पित्त दोष को संतुलित करता है और स्वास्थ्य लाभ देता है। स्नान के समय जपें: “ॐ ग्रसितार्काय नमः” – चंद्र देव का यह मंत्र मन को शांत करता है।
- खीर का प्रसाद और चंद्र अर्घ्य : दोपहर में चांदी के बर्तन में चावल की खीर बनाएं (सफेद चावल, दूध और चीनी से)। गंगाजल डालकर रसोई में चंद्र यंत्र स्थापित करें। सायंकाल खीर को खुले आकाश में चंद्रमा के नीचे रखें। रात्रि में चंद्रमा को दूध और जल अर्घ्य दें। अगली सुबह प्रसाद ग्रहण करें—यह अमृत तुल्य माना जाता है और धन-वृद्धि करता है। छत्तीसगढ़ में इसे “चंद्र अमृत खीर” कहते हैं। अर्घ्य देते समय गाएं: “ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं महालक्ष्म्यै नमः” – यह लक्ष्मी मंत्र धन की वर्षा करता है।
- लक्ष्मी-विष्णु पूजा : शाम को स्वच्छ वस्त्र धारण कर लक्ष्मी-विष्णु की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। सफेद फूल, कमल गट्टा, धूप-दीप और खीर का भोग लगाएं। “ॐ अष्टलक्ष्म्यै नमः” मंत्र का 108 बार जाप करें। छत्तीसगढ़ी परंपरा में महिलाएं विशेष रूप से यह पूजा करती हैं, परिवार की समृद्धि के लिए। पूजा में कहावत याद रखें: “भक्ति की ज्योति से घर आलोकित” – अर्थात् सच्ची भक्ति से घर में प्रकाश फैलता है।
- रासलीला और भजन : रात्रि में कृष्ण-राधा की रासलीला की कथा पढ़ें या लोक गीत गाएं। छत्तीसगढ़ के ग्रामीण क्षेत्रों में युवा मंडली रास नृत्य करती है, जो भक्ति और आनंद का संगम है। भजन गाते समय शामिल करें: “ॐ मेरुगोत्रप्रदक्षिणाय नमः” – चंद्र देव का यह श्लोक रास की मधुरता बढ़ाता है।
- दान और पर्यावरण संरक्षण : पर्व के अंत में ब्राह्मण या गरीबों को दान दें—सफेद वस्त्र, चावल या खीर। छत्तीसगढ़ की प्रकृति-प्रधान संस्कृति में पेड़ लगाना या नदी सफाई जैसे उपाय भी जोड़े जाते हैं, जो पर्व को आधुनिक बनाते हैं। दान देते समय सोचें: “दान से बड़ा कोई धर्म नहीं” – यह पुरानी कहावत जीवन की सार्थकता सिखाती है।
शरद पूर्णिमा की यह रात्रि न केवल आध्यात्मिक जागरण का अवसर है, बल्कि छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक धरोहर को मजबूत करने का माध्यम भी। इस वर्ष 6 अक्टूबर को चंद्रमा की पूर्णिमा पर यदि आप इन उपायों का पालन करेंगे, तो निश्चित रूप से जीवन में समृद्धि और शांति का आगमन होगा।

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