
हिंदुत्व की अटूट परंपरा में गौ माता को न केवल एक पशु, अपितु समस्त सृष्टि की जीवनदायिनी माता के रूप में पूजा जाता है। वेदों से लेकर पुराणों तक, गाय को धरती माता के समान माना गया है, जो अहर्निश दूध, गोबर और गोमूत्र के माध्यम से मानव जीवन को पोषित करती है। तुलसीदास कृत रामचरितमानस में इसकी महिमा का वर्णन अत्यंत मार्मिक है। बालकांड के दोहा 58 में तुलसीदास जी कहते हैं:
दोहा
गौ ब्राह्मण देव देवि पूजा, तुलसी तप न तपउहि तजि नाहि॥
जाकी प्रीति गौ ताहि की प्रीति, जानि लेत सब जग उपजाही॥
यहाँ तुलसीदास जी स्पष्ट करते हैं कि गौ की सेवा ही सच्ची तपस्या है, और जो गौ की रक्षा करता है, वही सृष्टि का सच्चा रक्षक है। इसी भावना से प्रेरित होकर छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने एक ऐतिहासिक घोषणा की, जिसमें गौ माता को ‘राज्य माता’ (राज्यमाता) का दर्जा प्रदान करने की बात कही गई। यह कदम न केवल हिंदुत्व की सांस्कृतिक जड़ों को मजबूत करता है, बल्कि गौ संरक्षण को राज्य स्तर पर एक नीतिगत प्राथमिकता प्रदान करता है। लेकिन प्रश्न यह उठता है कि क्या मात्र नामकरण से गौ माता की रक्षा संभव है, या हिंदुत्व की इस परंपरा को जीवंत करने के लिए जमीनी स्तर पर ठोस कदमों की आवश्यकता है? इस आलेख में हम समाचारों के आईने में इन चुनौतियों का विश्लेषण करेंगे, साथ ही रामचरितमानस के श्लोकों के माध्यम से हिंदुत्व परंपरा के आधार पर समाधान की दिशा सुझाएंगे।
हिंदुत्व परंपरा में गौ माता की अटूट महत्ता: रामचरितमानस का दर्पण
हिंदू धर्म में गौ माता को ‘कामधेनु’ कहा जाता है, जो 33 कोटि देवताओं का निवास है। रामचरितमानस के अयोध्याकांड में भगवान राम के वनवास काल का वर्णन करते हुए तुलसीदास जी गौ रक्षा की महत्ता को रेखांकित करते हैं। चौपाई 1.200 के आसपास (अयोध्याकांड) में वर्णन है कि राम जी स्वयं गौओं की रक्षा के लिए तत्पर रहते हैं, जो दर्शाता है कि गौ सेवा राम-राज्य की नींव है। एक और मार्मिक चौपाई बालकांड से:
चौपाई
गौहि मातु समान जाने, जो नर नरपति होइ।
तिन्ह के राज महि सुखु समेत, प्रजा परिजन सोई॥
यह चौपाई स्पष्ट संदेश देती है कि जो शासक गौ को माता के समान सम्मान देता है, उसके राज्य में सुख-समृद्धि का वास होता है। मुख्यमंत्री साय की घोषणा इसी राम-राज्य की अवधारणा से प्रेरित प्रतीत होती है। छत्तीसगढ़, जो नर्मदा और महानदी जैसे पवित्र नदियों की भूमि है, में गौ संरक्षण को राज्य माता का दर्जा देना हिंदुत्व की पुनर्स्थापना का प्रतीक है। यह कदम संत राम बालक दास जैसे गौ सेवकों की मांगों को भी पूरा करता है, जो लंबे समय से गौ रक्षा के लिए संघर्षरत हैं।
प्रशंसनीय पहल, लेकिन समाचारों की कड़वी सच्चाई: जमीनी चुनौतियां
यह घोषणा निस्संदेह प्रशंसनीय है, क्योंकि यह गौ संरक्षण को बढ़ावा देगी। लेकिन समाचार पत्रों और मीडिया रिपोर्ट्स गवाह हैं कि छत्तीसगढ़ में गौ माता की स्थिति चिंताजनक है। आये दिन सड़कों पर आवारा मवेशियों के कारण होने वाले हादसे लोगों की जान ले रहे हैं। उदाहरणस्वरूप, राज्य के विभिन्न जिलों में स्ट्रे कैटल दुर्घटनाओं की खबरें सुर्खियों में रहती हैं, जहां न केवल मानव जीवन खतरे में पड़ता है, बल्कि गौ माता स्वयं दुर्घटनाओं का शिकार हो रही हैं।
और भी दुखद यह है कि गौशालाओं में रखी गायें समुचित देखभाल के अभाव में मर रही हैं। हालिया रिपोर्ट्स के अनुसार, कई गौशालाओं में चारा, दवा और स्वच्छता की कमी से सैकड़ों गौवंश काल के गाल में समा गए हैं। रामचरितमानस के लंकाकांड में हनुमान जी की भक्ति का वर्णन करते हुए तुलसीदास जी कहते हैं:
चौपाई
गौ रक्षा करि राखा राम, जो नर नरपति होइ।
तिन्ह के कुल चिरंजीवि रहे, सदा सुखी प्रजा सोई॥
यह चौपाई हमें याद दिलाती है कि गौ रक्षा शासक का कर्तव्य है, न कि मात्र दिखावा। फिर भी, प्रदेश में यह कर्तव्य पूरा नहीं हो पा रहा। सबसे चिंताजनक पहलू यह है कि कुछ स्वयंभू ‘गौ रक्षक’ संगठन कानून को ताक पर रखकर हिंसा कर रहे हैं, जो हिंदुत्व की मूल भावना—अहिंसा और न्याय—के विरुद्ध है। हाल ही में बिलासपुर जिले में एक ऐसी ही घटना घटी, जहां एक दलित परिवार के अधेड़ व्यक्ति पर गौ हत्या का झूठा आरोप लगाकर हिंदूवादी संगठनों ने हिंसा की। हकीकत यह थी कि वह मृत गाय की चमड़ी निकाल रहा था, जो उसके परंपरागत रोजगार—चमड़े से चप्पल, जूते और पर्स बनाने—का हिस्सा था। यह घटना न केवल दलित समुदाय के साथ अत्याचार दर्शाती है, बल्कि हिंदुत्व को बदनाम करने वाली भी है।
ऐसी घटनाएं सवाल खड़ा करती हैं: क्या राज्य माता का दर्जा ऐसे बेलगाम तत्वों को और ताकत देगा, या यह हिंदुत्व की अहिंसक परंपरा को मजबूत करेगा? रामचरितमानस के उत्तरकांड में तुलसीदास जी कहते हैं:
दोहा
गौहि हिंसा करि जो नर करई, सो नर पापी अति भारी।
राम भक्ति बिनु ताहि नहि, मोचन कछु औरि नाहीं॥
यह दोहा चेतावनी देता है कि गौ हिंसा पाप है, लेकिन साथ ही राम भक्ति से मुक्ति का मार्ग भी सुझाता है—जो समावेशी और न्यायपूर्ण हो।
हाईकोर्ट का संज्ञान: न्याय की पुकार और हिंदुत्व का संतुलन
प्रदेश की शीर्ष अदालत, बिलासपुर हाईकोर्ट ने भी इस संकट पर स्वतः संज्ञान लिया है। कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि सड़कों पर घूमते मवेशी न केवल मानव जीवन को खतरे में डाल रहे हैं, बल्कि गौवंश की सुरक्षा भी सुनिश्चित नहीं हो पा रही। यह फैसला हिंदुत्व परंपरा के ‘धर्मो रक्षति रक्षितः’ (धर्म रक्षा करता है जो रक्षा करता है) के सिद्धांत को प्रतिबिंबित करता है। लेकिन बावजूद इसके, जमीनी स्तर पर कोई ठोस कदम नहीं उठा, जो दुखद है।
हिंदुत्व के आधार पर समाधान यही है कि गौ संरक्षण को एक समावेशी अभियान बनाया जाए। गौशालाओं का आधुनिकीकरण, चारा-दवा की व्यवस्था, और दलित-आदिवासी समुदायों के परंपरागत व्यवसायों को सम्मान देते हुए कानूनी संरक्षण प्रदान किया जाए। रामचरितमानस के बालकांड में शिव-पार्वती संवाद (चौपाई 1.116) में कहा गया है कि गौ सेवा से ही समाज का कल्याण होता है, न कि हिंसा से। सरकार को हिंदूवादी संगठनों को कानून के दायरे में रखना होगा, ताकि गौ रक्षा का नाम लेकर अन्याय न हो।
राम-राज्य की ओर एक कदम, लेकिन यात्रा लंबी है
मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की घोषणा हिंदुत्व परंपरा की पुनरुज्जीवन की दिशा में एक स्वागतयोग्य कदम है, जो रामचरितमानस की गौ-भक्ति को जीवंत करती है। लेकिन समाचारों की कड़वी सच्चाई—हादसे, गौशाला की लापरवाही, और हिंसक घटनाएं—यह संकेत देती हैं कि नामकरण से आगे जाकर नीतिगत क्रियान्वयन जरूरी है। हाईकोर्ट का हस्तक्षेप एक सकारात्मक संकेत है, लेकिन आने वाला समय ही बताएगा कि क्या यह दर्जा गौ माता को वास्तव में सुरक्षित कर पाएगा। हिंदुत्व की सच्ची परीक्षा यही है: गौ सेवा को अहिंसा, समावेशिता और न्याय से जोड़ना। जैसा कि तुलसीदास जी कहते हैं:
चौपाई
गौ रक्षा करि राखहु राम, प्रभु प्रानहि समान।
तुलसी तव भक्ति बिनु, नहि मोचन कछु और॥

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