रायपुर। लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग (पीएचईडी) इन दिनों ऐसी गहरी नींद में सोया है कि न तो उसे जनता की प्यास की चिंता है, न ही अधूरी परियोजनाओं का हिसाब। विभाग का हाल उस पुराने सरकारी दफ्तर जैसा है, जहां फाइलें धूल खाती हैं और जिम्मेदारियां ‘प्रभारी’ बनकर टलती रहती हैं। प्रमोशन की घोषणा तो चार-पांच महीने पहले हो गई, लेकिन ट्रांसफर और नई पदस्थापना के आदेश? वो तो बस एक भूला-बिसरा सपना बनकर रह गया है।
प्रभारियों की चौपट, नियमितता की छुट्टी
विभाग में इन दिनों ‘प्रभारी संस्कृति’ का बोलबाला है। नियमित अधीक्षण अभियंताओं (सुपरिंटेंडिंग इंजीनियर) की मौजूदगी के बावजूद कार्यपालन अभियंताओं (एग्जीक्यूटिव इंजीनियर) को प्रभारी अधीक्षण अभियंता बनाकर कुर्सी सौंप दी गई है। यही नहीं, नियमित कार्यपालन अभियंताओं के होते हुए भी सहायक अभियंताओं (असिस्टेंट इंजीनियर) को प्रभारी कार्यपालन अभियंता की जिम्मेदारी थमा दी गई है। यह सब देखकर लगता है कि विभाग ने नियमित नियुक्तियों को अलविदा कह दिया है। सवाल उठता है—क्या यह चहेतों को खुश करने का खेल है, या विभाग को अब नियमित पदों की जरूरत ही नहीं रही? कई जिलों में यह ‘प्रभारी प्रथा’ इस कदर हावी है कि कर्मचारियों का मनोबल टूट रहा है, और कामकाज की गति ठप्प पड़ गई है।
ट्रांसफर-पोस्टिंग: फाइलों में कैद सपना
प्रमोशन के बाद कर्मचारियों को उम्मीद थी कि जल्द ही ट्रांसफर और नई पदस्थापना के आदेश जारी होंगे। लेकिन विभाग की फाइलें शायद किसी पुरानी अलमारी में धूल खा रही हैं। चार-पांच महीने बीत गए, मगर ट्रांसफर-पोस्टिंग का कोई अता-पता नहीं। नतीजा? कर्मचारी असमंजस में हैं, और विभागीय कार्यों की रफ्तार सुस्त पड़ गई है। पेयजल योजनाएं अधूरी, पाइपलाइनें टूटी-फूटी, और ग्रामीण क्षेत्रों में पानी की किल्लत—यह सब विभाग की लापरवाही का जीवंत प्रमाण है।
ठेकेदारों का भुगतान रुका, लक्ष्मी आराधना चालू
एक तरफ ठेकेदारों के बकाया भुगतान अटके पड़े हैं, जिससे निर्माण कार्य और परियोजनाएं लटक रही हैं। दूसरी तरफ, ट्रांसफर-पोस्टिंग की सुस्ती और प्रभारियों की मनमानी नियुक्तियां विभाग की कार्यशैली पर सवाल उठाती हैं। लगता है, विभाग का सारा ध्यान अब ‘लक्ष्मी आराधना’ में उलझ गया है, जबकि जनता की बुनियादी जरूरतें—पानी, सड़क, और बुनियादी ढांचा—पिछड़ते जा रहे हैं। ठेकेदारों का भुगतान रोककर और परियोजनाओं को लटकाकर विभाग आखिर क्या साबित करना चाहता है?
विभाग का यह रवैया कई गंभीर सवाल खड़े करता है:
• क्या नियमित नियुक्तियों और समयबद्ध ट्रांसफर-पोस्टिंग की व्यवस्था को पूरी तरह खत्म कर दिया गया है?
• क्या प्रभारियों की नियुक्ति के पीछे कोई ‘खास मंशा’ काम कर रही है?
• क्या जनता की सेवा और बुनियादी सुविधाओं का विकास अब विभाग की प्राथमिकता में नहीं रहा?
• ठेकेदारों के भुगतान रोकने और परियोजनाओं को लटकाने का जिम्मेदार कौन है?
जागो, पीएचईडी, जागो!
लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग को अब अपनी कुंभकर्णी नींद से जागने की जरूरत है। जनता की प्यास बुझाने, कर्मचारियों का मनोबल बढ़ाने, और अधूरी परियोजनाओं को पूरा करने की जिम्मेदारी अब और टाली नहीं जा सकती। प्रभारियों की चौपट और लक्ष्मी आराधना का खेल अब बंद होना चाहिए। अगर विभाग को लगता है कि प्रभारियों के सहारे और फाइलों को दबाकर सब कुछ ठीक हो जाएगा, तो यह उसकी सबसे बड़ी भूल होगी। जनता की नजरें टिकी हैं, और जवाबदेही का समय आ गया है। आखिर, कब जागेगा यह विभाग, और कब मिलेगा जनता को उसका हक?

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