नई दिल्ली। मध्यपूर्व में ईरान और इज़रायल के बीच चल रहा युद्ध एक नए और खतरनाक मोड़ पर पहुंच चुका है। इस संघर्ष में अमेरिका की संभावित सैन्य भागीदारी और राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की नीतियों ने वैश्विक स्तर पर चिंता बढ़ा दी है। इस युद्ध का भारत पर आर्थिक, कूटनीतिक और भू-राजनीतिक प्रभाव पड़ने की संभावना है। आइए, इस स्थिति का विश्लेषण करें।
अब तक : ईरान-इज़रायल युद्ध
13 जून, 2025 को इज़रायल ने ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमले शुरू किए, जिसका उद्देश्य ईरान की परमाणु हथियार बनाने की क्षमता को नष्ट करना था। इसके जवाब में, ईरान ने इज़रायल पर मिसाइल और ड्रोन हमले किए, जिससे दोनों देशों के बीच तनाव चरम पर पहुंच गया। इस संघर्ष में अब तक इज़रायल और ईरान के सैकड़ों लोगों की मौत की खबर है, जिनमें ज्यादातर नागरिक हैं।
अमेरिका की भूमिका और ट्रम्प की नीति
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने इस युद्ध में अमेरिका की भूमिका को लेकर अस्पष्ट रुख अपनाया है। शुरुआत में, ट्रम्प ने कूटनीति के जरिए शांति स्थापित करने की बात कही और ईरान को परमाणु हथियार बनाने से रोकने के लिए 60 दिन का अल्टीमेटम दिया। हालांकि, 21 जून को अमेरिका ने ईरान के तीन प्रमुख परमाणु ठिकानों—फोर्डो, नटांज़ और इस्फहान—पर सैन्य हमले किए, जिसे ट्रम्प ने “शानदार सैन्य सफलता” बताया।
ट्रम्प का रुख समय-समय पर बदलता रहा है। एक ओर, उन्होंने ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्लाह अली खामनेई को “बिना शर्त आत्मसमर्पण” करने की चेतावनी दी, वहीं दूसरी ओर, उन्होंने कूटनीति की संभावनाओं को खारिज नहीं किया। ट्रम्प ने इज़रायल के खामनेई को मारने के प्रस्ताव को भी वीटो कर दिया, जिससे यह संकेत मिलता है कि वह व्यापक युद्ध से बचना चाहते हैं।
ट्रम्प की “अमेरिका फर्स्ट” नीति के बावजूद, उनके कुछ समर्थक, जैसे टकर कार्लसन और मार्जोरी टेलर ग्रीन, इस युद्ध में अमेरिका की भागीदारी का विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि यह नीति अमेरिकी हितों के खिलाफ है। दूसरी ओर, सीनेटर लिंडसे ग्राहम जैसे कुछ रिपब्लिकन नेता ईरान के परमाणु खतरे को खत्म करने के लिए सैन्य कार्रवाई का समर्थन कर रहे हैं।
भारत पर प्रभाव
इस युद्ध और अमेरिका की भागीदारी का भारत पर कई स्तरों पर प्रभाव पड़ सकता है। भारत के लिए मध्यपूर्व एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है, क्योंकि यह भारत की ऊर्जा सुरक्षा, व्यापार और प्रवासी भारतीयों के लिए महत्वपूर्ण है।
- ऊर्जा सुरक्षा और तेल की कीमतें
मध्यपूर्व में तनाव बढ़ने से वैश्विक तेल आपूर्ति प्रभावित हो सकती है। ईरान के होर्मुज स्ट्रेट को बंद करने की धमकी से तेल की कीमतों में उछाल आ सकता है। हाल के आंकड़ों के अनुसार, ब्रेंट क्रूड की कीमत $77 प्रति बैरल तक पहुंच चुकी है, जो पिछले साल की तुलना में 10% अधिक है। भारत, जो अपनी तेल आवश्यकताओं का 80% से अधिक आयात करता है, को उच्च तेल कीमतों का सामना करना पड़ सकता है, जिससे मुद्रास्फीति और आर्थिक दबाव बढ़ेगा। - प्रवासी भारतीयों की सुरक्षा
मध्यपूर्व में लगभग 90 लाख भारतीय प्रवासी रहते हैं, जिनमें से कई संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब और कतर जैसे देशों में हैं, जो इस युद्ध के प्रभाव क्षेत्र में हैं। यदि युद्ध बढ़ता है और अमेरिकी सैन्य ठिकानों पर हमले होते हैं, तो इन देशों में अस्थिरता बढ़ सकती है, जिससे भारतीय प्रवासियों की सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है। - कूटनीतिक चुनौतियां
भारत ने ईरान और इज़रायल दोनों के साथ अच्छे संबंध बनाए रखे हैं। ईरान भारत के लिए चाबहार बंदरगाह और ऊर्जा आपूर्ति के लिए महत्वपूर्ण है, जबकि इज़रायल रक्षा और प्रौद्योगिकी सहयोग में अहम भागीदार है। अमेरिका की सैन्य भागीदारी भारत को एक तटस्थ रुख बनाए रखने के लिए मजबूर कर सकती है, जो कूटनीतिक रूप से जटिल होगा। ट्रम्प ने भारत और पाकिस्तान के बीच मई 2025 में संघर्ष विराम कराने का दावा किया है, जिसे वह इस युद्ध में शांति स्थापित करने के लिए उदाहरण के रूप में पेश कर रहे हैं। हालांकि, भारत को इस स्थिति में सावधानी से कदम उठाने होंगे ताकि भारत के हित प्रभावित न हों। - आर्थिक और व्यापारिक प्रभाव
मध्यपूर्व में अस्थिरता भारत के निर्यात, विशेष रूप से पेट्रोकेमिकल्स, कपड़ा और कृषि उत्पादों को प्रभावित कर सकती है। इसके अलावा, यदि ईरान वैश्विक व्यापार मार्गों, जैसे होर्मुज स्ट्रेट, को बाधित करता है, तो भारत का समुद्री व्यापार भी प्रभावित होगा।
ट्रम्प का प्रभाव और भारत के लिए चुनौतियां
ट्रम्प की अप्रत्याशित विदेश नीति भारत के लिए अनिश्चितता पैदा करती है। उनकी “शांति के माध्यम से ताकत” नीति और युद्ध में सीमित हस्तक्षेप की रणनीति भारत के लिए अवसर और चुनौतियां दोनों ला सकती है। यदि ट्रम्प कूटनीति के जरिए युद्ध को समाप्त करने में सफल होते हैं, तो यह भारत के लिए फायदेमंद होगा, क्योंकि इससे क्षेत्रीय स्थिरता बनी रहेगी। लेकिन अगर युद्ध लंबा खिंचता है, तो भारत को आर्थिक और कूटनीतिक दबाव का सामना करना पड़ सकता है।
संजय राउत जैसे कुछ भारतीय नेताओं ने ट्रम्प की नीतियों पर सवाल उठाए हैं, यह आशंका जताते हुए कि क्या वह भारत में भी सत्ता परिवर्तन की कोशिश कर सकते हैं। यह बयान भारत में ट्रम्प की नीतियों को लेकर बढ़ती चिंता को दर्शाता है।
क्या करे भारत
ईरान-इज़रायल युद्ध और अमेरिका की संभावित भूमिका भारत के लिए कई चुनौतियां और अवसर लेकर आ रही है। भारत को अपनी ऊर्जा सुरक्षा, प्रवासी भारतीयों की सुरक्षा और कूटनीतिक संतुलन बनाए रखने के लिए सावधानीपूर्वक रणनीति अपनानी होगी। ट्रम्प की नीतियां, जो कभी युद्ध की धमकी देती हैं और कभी शांति की बात करती हैं, इस स्थिति को और जटिल बनाती हैं। भारत को इस संकट में तटस्थ रहते हुए अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा करनी होगी।

COMMENTS