विनोद डोंगरे • छत्तीसगढ़ के हृदय में बसा बस्तर, जहां प्रकृति की अनुपम छटा और प्राचीन संस्कृति का संगम है, अब एक नए युग की ओर बढ़ रहा है। माओवादी हिंसा की छाया से जूझता यह क्षेत्र अब शांति और करुणा के संदेशवाहक भगवान बुद्ध की बयार से सराबोर होने को तैयार है। आगामी 1 जून 2025 को बस्तर संभाग के कोंडागांव जिले में भोंगापाल, जो राजधानी रायपुर से दक्षिण दिशा में लगभग 250 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, में राज्य स्तरीय भोंगापाल बुद्ध महोत्सव का आयोजन होने जा रहा है। यह आयोजन न केवल एक सांस्कृतिक उत्सव होगा, बल्कि बस्तर में शांति और समृद्धि का प्रतीक भी बनेगा। इस महोत्सव के मुख्य अतिथि राज्य के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय होंगे, और पूरे छत्तीसगढ़ से बौद्ध अनुयायी इस पवित्र अवसर पर एकत्रित होंगे।
बस्तर और बुद्ध: एक प्राचीन संनाद
बस्तर का इतिहास केवल घने जंगलों, पहाड़ों और जनजातीय संस्कृति तक सीमित नहीं है; यह भगवान बुद्ध की शिक्षाओं से भी गहराई से जुड़ा है। भोंगापाल में लतुरा नदी के तट पर एक प्राचीन ईंट निर्मित बौद्ध चैत्य गृह और बुद्ध प्रतिमा स्मारक इस क्षेत्र की प्राचीन धरोहर को जीवंत करता है। यह स्मारक छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा संरक्षित है और बस्तर संभाग का एकमात्र ईंट निर्मित बौद्ध गृह है। पुरातात्विक खोजों ने बस्तर में बौद्ध अवशेषों की उपस्थिति को उजागर किया है, जो दर्शाते हैं कि यह क्षेत्र कभी बौद्ध धर्म का महत्वपूर्ण केंद्र रहा होगा। बस्तर की जनजातीय संस्कृति में भी बौद्ध धर्म के प्रभाव के सूक्ष्म चिह्न देखे जा सकते हैं, जो सामुदायिक जीवन और प्रकृति के साथ सामंजस्य की भावना को रेखांकित करते हैं।

बस्तर में केशकाल के विधायक, पूर्व आईएएस तथा इस आयोजन समिति के प्रमुख नीलकंठ टेकाम ने कहा, “भोंगापाल बुद्ध महोत्सव हमारी सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर को संरक्षित करने का एक अनूठा प्रयास है। यह आयोजन न केवल स्थानीय समुदाय को एकजुट करेगा, बल्कि बस्तर को पर्यटन के नक्शे पर और मजबूती प्रदान करेगा। इस बार हम सांस्कृतिक कार्यक्रमों, बौद्ध भजनों, स्थानीय कलाकारों की प्रस्तुतियों और पुरातात्विक प्रदर्शनी के माध्यम से इस स्थल के महत्व को लोगों तक पहुंचाएंगे।” उन्होंने बताया कि पुरातत्व विभाग के सहयोग से इस क्षेत्र को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने की योजना है।
माओवाद की छाया से शांति की राह
लंबे समय तक बस्तर माओवादी हिंसा का गढ़ रहा। घने जंगल और दुर्गम पहाड़ियां उग्रवादियों के लिए सुरक्षित ठिकाना बनाए हुए थीं। किंतु हाल के वर्षों में केंद्र और राज्य सरकार की संयुक्त रणनीति ने इस क्षेत्र में बदलाव की नींव रखी है। हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने घोषणा की थी कि 31 मार्च 2026 तक माओवाद का पूर्ण उन्मूलन कर लिया जाएगा। इस दिशा में बस्तर में सुरक्षा बलों ने एक बड़ा ऑपरेशन चलाया। अब बस्तर में शांति की उम्मीद जगी है।
इसी शांति की लहर पर सवार होकर भोंगापाल बुद्ध महोत्सव का आयोजन हो रहा है। यह महोत्सव केवल एक धार्मिक समारोह नहीं, बल्कि बस्तर की नई पहचान का प्रतीक है। यह आयोजन हिंसा के अंधेरे को पीछे छोड़कर अहिंसा और करुणा के प्रकाश को अपनाने का संदेश देता है। भगवान बुद्ध की शिक्षाएं, जो चार आर्य सत्य और अष्टांगिक मार्ग पर आधारित हैं, बस्तर के लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन सकती हैं। ये शिक्षाएं दुख, उसके कारण, उसके निरोध और मार्ग को समझने का रास्ता दिखाती हैं, जो बस्तर की चुनौतियों से जूझ रहे लोगों के लिए एक नई दिशा प्रदान कर सकती हैं।

महोत्सव की तैयारियां: उत्साह का माहौल
छत्तीसगढ़ शासन में पदस्थ भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी व रायपुर संभाग के आयुक्त श्री महादेव कावरे इस आयोजन के समिति के सह संयोजक के रूप में तैयारियों में सतत रूप से सक्रिय हैं. उन्होंने बताया कि भोंगापाल बुद्ध महोत्सव की तैयारियां पूरे छत्तीसगढ़ में जोर-शोर से चल रही हैं। बौद्ध अनुयायी इस आयोजन को ऐतिहासिक बनाने के लिए दिन-रात जुटे हैं। प्रत्येक जिले में समितियां गठित की गई हैं, जो सांस्कृतिक कार्यक्रमों, बौद्ध भजनों, और ध्यान सत्रों की रूपरेखा तैयार कर रही हैं। महोत्सव में बौद्ध भिक्षुओं के प्रवचन, सांस्कृतिक नृत्य, और स्थानीय जनजातीय कलाओं का प्रदर्शन होगा। यह आयोजन बस्तर की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को भी सामने लाएगा, जिसमें गोंड, मुरिया और भतरा जनजातियों की कला और परंपराएं शामिल होंगी। बौद्ध अनुयायी “ॐ मणि पद्मे हुं” मंत्र के जाप के साथ शांति और करुणा की प्रार्थना करेंगे, जो इस आयोजन का मुख्य आकर्षण होगा। भोंगापाल के कालचक्र मैदान को सजाया जा रहा है, जहां बुद्ध की शिक्षाओं पर आधारित प्रदर्शनियां और फिल्म फेस्टिवल भी आयोजित किए जाएंगे। यह आयोजन बोधगया के वार्षिक बौद्ध महोत्सव की तर्ज पर होगा, जिसमें बुद्ध की शिक्षाओं और बस्तर की सांस्कृतिक विरासत को प्रदर्शित किया जाएगा।
उन्होंने बताया कि महोत्सव में बौद्ध भिक्षुओं के प्रवचन, सांस्कृतिक नृत्य, और स्थानीय जनजातीय कलाओं का प्रदर्शन होगा। यह आयोजन बस्तर की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को सामने लाएगा। बौद्ध अनुयायी “ॐ मणि पद्मे हुं” मंत्र के जाप के साथ शांति और करुणा की प्रार्थना करेंगे, जो इस आयोजन का मुख्य आकर्षण होगा।
मुख्यमंत्री की उपस्थिति: एक नई शुरुआत
मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की उपस्थिति इस आयोजन को और भी विशेष बनाएगी। उनकी मौजूदगी न केवल बौद्ध अनुयायियों के लिए प्रेरणादायक होगी, बल्कि यह भी संदेश देगी कि राज्य सरकार बस्तर में शांति और विकास के लिए प्रतिबद्ध है। यह महोत्सव बस्तर के लोगों को एकजुट करने और उन्हें बौद्ध धर्म के अहिंसा और करुणा के सिद्धांतों से जोड़ने का एक अवसर है। यह आयोजन बस्तर के विकास के लिए एक नई शुरुआत का प्रतीक हो सकता है, जहां शिक्षा, स्वास्थ्य, और बुनियादी ढांचे के विकास को बढ़ावा दिया जा रहा है।
शांति और समृद्धि का प्रतीक
भोंगापाल बुद्ध महोत्सव बस्तर के लिए एक ऐतिहासिक क्षण है। यह आयोजन न केवल बौद्ध धर्म की समृद्ध विरासत को जीवंत करेगा, बल्कि बस्तर के लोगों को एक नई उम्मीद और दिशा भी देगा। हिंसा की छाया से मुक्त होकर बस्तर अब बुद्ध की शांति और करुणा की राह पर चलने को तैयार है। यह महोत्सव बस्तर की धरती पर बुद्ध की बयार का प्रतीक बनेगा, जो हर दिल में शांति और प्रेम का संदेश बोएगा।
जैसे बुद्ध ने कहा था, “शांति भीतर से आती है, इसे बाहर न खोजें।” भोंगापाल बुद्ध महोत्सव इसी शांति की खोज का एक प्रयास है, जो बस्तर को एक नया स्वरूप देगा। आइए, इस ऐतिहासिक अवसर पर एकजुट होकर बस्तर में शांति और समृद्धि का नया अध्याय लिखें। • विनोद डोंगरे

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