
बिहार की राजनीति हमेशा से ही अप्रत्याशित मोड़ों के लिए जानी जाती रही है, और 2025 के विधानसभा चुनाव इसकी एक और मिसाल पेश करने को तैयार हैं। 29 सितंबर 2025 को हम खड़े हैं, जब चुनाव आयोग ने अभी तक तारीखों की आधिकारिक घोषणा नहीं की है, लेकिन अनुमान है कि मतदान अक्टूबर-नवंबर में होगा, क्योंकि वर्तमान विधानसभा का कार्यकाल 22 नवंबर को समाप्त हो रहा है। राज्य में कुल 243 सीटें हैं, और मुख्य मुकाबला एनडीए (बीजेपी-जेडीयू) और महागठबंधन (आरजेडी-कांग्रेस) के बीच है। लेकिन इस बार एक नया तीसरा खिलाड़ी—जन सुराज पार्टी—माहौल को और गर्म कर रहा है। युवा बेरोजगारी, प्रवासन, जातिगत समीकरण और विकास के वादों ने चुनावी माहौल को तीखा बना दिया है। सर्वे बताते हैं कि यह एक कांटे का मुकाबला होगा, जहां बेरोजगारी (60% से अधिक वोटरों के लिए प्रमुख मुद्दा) और मतदाता सूची संशोधन जैसे विवाद मुख्य भूमिका निभाएंगे। ओपिनियन पोल्स में एनडीए को हल्की बढ़त दिख रही है, लेकिन प्रशांत किशोर की जन सुराज को ‘किंगमेकर’ की भूमिका मिल सकती है, जो एनडीए के वोट काटकर महागठबंधन को फायदा पहुंचा सकती है।
पार्टियों की रणनीतियां: कौन क्या कर रहा है?
बिहार की सियासत में पार्टियां अपनी-अपनी ताकत पर दांव लगा रही हैं। एनडीए गठबंधन की एकजुटता पर जोर दे रहा है, जबकि विपक्ष डिजिटल कैंपेन और सामाजिक न्याय के नारे बुलंद कर रहा है। जन सुराज जैसी नई ताकतें जाति-निरपेक्ष राजनीति का दावा कर रही हैं। एनडीए, जिसमें बीजेपी, जेडीयू और अन्य सहयोगी शामिल हैं, विकास, कानून-व्यवस्था और जातिगत संतुलन पर फोकस कर रहा है। बीजेपी और जेडीयू के बीच सीट शेयरिंग में लगभग बराबर बंटवारा होने की उम्मीद है। हाल ही में अमित शाह की पटना यात्रा में रणनीति बैठक हुई, और जितन राम मांझी ने दशहरा के बाद सीट शेयरिंग की घोषणा की बात कही। एनडीए पीएम मोदी की छवि का जमकर इस्तेमाल कर रहा है। दूसरी ओर, महागठबंधन, जिसमें आरजेडी और कांग्रेस शामिल हैं, रोजगार, युवा मुद्दों और एंटी-इनकंबेंसी पर जोर दे रहा है। तेजस्वी यादव ने एआई-जनरेटेड वीडियो और मीम्स के जरिए डिजिटल कैंपेन को तेज किया है। वे पिछड़ी जातियों की सभाएं कर रहे हैं, और राहुल गांधी ने अगस्त में अपनी यात्रा के दौरान मतदाता सूची विवाद को उठाया। कन्हैया कुमार की पदयात्रा भी महागठबंधन को मजबूती दे रही है। जन सुराज पार्टी तीसरे विकल्प के रूप में उभर रही है, जो जाति-निरपेक्ष और युवा-केंद्रित राजनीति का दावा करती है। प्रशांत किशोर की पदयात्राएं और हिंदू-मुस्लिम ’40-20′ कार्ड चर्चा में हैं। कुछ अफवाहें आरजेडी के साथ उनके गुप्त गठबंधन की भी हैं, और उनकी पार्टी 40 सीटों पर फोकस कर रही है।

प्रमुख नेताओं की संभावनाएं: प्रशांत, तेजस्वी और नीतीश का भविष्य
प्रशांत किशोर, जो पहले चुनावी रणनीतिकार थे, अब जन सुराज पार्टी के साथ मैदान में हैं। उनकी पार्टी बिहार में ‘परिवर्तन’ का नारा दे रही है, और सर्वे में वे सबसे लोकप्रिय सीएम उम्मीदवार के रूप में उभर रहे हैं, जिन्हें 16-18% समर्थन मिल रहा है। प्रशांत का दावा है कि एनडीए सत्ता में नहीं लौटेगा, नीतीश सीएम नहीं बनेंगे, और जेडीयू 25 सीटों से कम जीतेगी। उनकी रणनीति एनडीए के वोट, खासकर युवा और स्विंग वोटर्स, को काटने की है, जो उन्हें किंगमेकर बना सकती है। लेकिन अगर उनकी पार्टी 10 सीटों से कम जीतती है, तो उन्हें बड़ा झटका लग सकता है। सर्वे में उनकी पार्टी को ‘सरप्राइज’ फैक्टर माना जा रहा है।
तेजस्वी यादव, लालू परिवार के उत्तराधिकारी, युवाओं के चेहरे बन चुके हैं। सर्वे में उनकी लोकप्रियता 34-37% है, जो नीतीश से कहीं अधिक है। वे रोजगार पैकेज (लाखों नौकरियां) का वादा कर रहे हैं और डिजिटल कैंपेन से सोशल मीडिया पर धूम मचा रहे हैं। महागठबंधन को 145-150 सीटें मिलने का अनुमान है, और अगर जन सुराज एनडीए को कमजोर करती है, तो तेजस्वी सीएम बन सकते हैं। हालांकि, ‘जंगलराज’ का डर उनके खिलाफ काम कर रहा है।
नीतीश कुमार, जिन्हें ‘सुशासन बाबू’ कहा जाता है, की लोकप्रियता घट रही है। सर्वे में वे तीसरे नंबर पर हैं, और प्रशांत की भविष्यवाणी है कि वे नवंबर के बाद सीएम नहीं रहेंगे। जेडीयू गवर्नेंस और विकास पर जोर दे रही है, लेकिन चिराग पासवान जैसे सहयोगियों से टकराव और एंटी-इनकंबेंसी उन्हें नुकसान पहुंचा रही है। अगर एनडीए जीता, तो भी नीतीश की कुर्सी पर सवाल उठेंगे, क्योंकि बीजेपी उन्हें ‘अस्थिर’ मान रही है।
बीजेपी का हाल: मजबूत लेकिन सतर्क
बीजेपी बिहार में एनडीए की रीढ़ है और ओपिनियन पोल में ‘बड़ी जीत’ की भविष्यवाणी हो रही है। वे आरजेडी पर ‘जंगलराज’ और भ्रष्टाचार के आरोप लगा रहे हैं, जबकि केंद्र की योजनाओं, जैसे बजट में 9.23 लाख करोड़ के आवंटन, का प्रचार कर रहे हैं। अमित शाह की रणनीति बैठकें और पीएम मोदी की छवि उन्हें मजबूत बना रही हैं, लेकिन जन सुराज से वोट कटने का खतरा है। अगर गठबंधन टूटा, तो बीजेपी अकेले 80-95 सीटें ले सकती है, लेकिन नीतीश पर निर्भरता उनकी कमजोरी है। बीजेपी सतर्क मोड में है और युवा वोटरों को लुभाने के लिए ‘ऑपरेशन सिंदूर’ जैसी रणनीतियां चला रही है।
बिहार 2025 का चुनाव न केवल सत्ता का खेल है, बल्कि राज्य के भविष्य का फैसला भी है। जहां तेजस्वी युवा आक्रोश को भुनाने को बेताब हैं, वहीं प्रशांत नया विकल्प पेश कर रहे हैं, और नीतीश का युग ढलता नजर आ रहा है। बीजेपी की मजबूती के बावजूद, जन सुराज जैसे फैक्टर इसे क्लिफहैंगर बना सकते हैं। अंततः, बिहारी युवा का फैसला तय करेगा कि बिहार ‘सुशासन’ की राह पर चलेगा या ‘परिवर्तन’ की तलाश में।

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