बिलासपुर : आंगनबाड़ी में 9 माह से नहीं मिल रहा बच्चों को भोजन, फिर बिल क्यों जमा हुआ? सेक्टर सुपरवाइजर पर भ्रष्ट्राचार का आरोप

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बिलासपुर : आंगनबाड़ी में 9 माह से नहीं मिल रहा बच्चों को भोजन, फिर बिल क्यों जमा हुआ? सेक्टर सुपरवाइजर पर भ्रष्ट्राचार का आरोप

रायपुर। बिलासपुर जिले में कोटा क्षेत्र के आंगनबाड़ी में पिछले 9 माह से बच्चों को भोजन नहीं दिए जाने की खबर प्रकाश में आयी है। हैरानी की बात यह है कि इस अवधि का बिल जमा जमा करने की बात सामने आ रही है, ताकि उस राशि को निकालकर बंदरबाट किया जा सके। इसका खुलासा तब हुआ, जब इस क्षेत्र के जनपद सदस्य ने इसकी शिकायत विभागीय मंत्री, कलेक्टर, डीपीओ आदि से की है। जनपद सदस्य ने सुपरवाइजर पर मिलीभगत का आरोप लगाया है। उन्होंने इस मामले में लिप्त दोषियों पर कड़ी कार्रवाई की मांग की है। पिछले 9 माह से चल रहे इस कारनामे की भनक जिम्मेदार विभागीय अधिकारियों को नहीं लगी इस बात का सबूत क्या यह शिकायत पत्र नहीं है? सवाल कायम है।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़, यह मामला एकीकृत महिला बाल विकास परियोजना कोटा के ग्राम पंचायत नवागांव (मोहदा) का है। जनपद सदस्य अरविन्द जायसवाल ने 23 जुलाई 2025 परियोजना अधिकारी, कोटा को इस संबंध में एक शिकायत प्रस्तुत किया है। शिकायत पत्र में बताया गया है, कि आंगनबाड़ी केंद्र क्रमांक-1 नवागांव (मोहदा) में पिछले 9 माह से बच्चों को भोजन नहीं दिया जा रहा है। जनपद सदस्य ने सेक्टर सुपरवाइजर पर भ्रष्ट्राचार के गोरखधंधे का आरोप लगाते हुए लिखा है कि 15-20 किलोमीटर दूर के सेक्टर में फ़र्ज़ी तरीके से देयक प्रस्तुत किया गया है। उन्होंने मंत्री, कलेक्टर, डीपीओ और परियोजना अधिकारी से दोषियों पर कड़ी कार्रवाई की मांग की है।

अरविन्द जायसवाल, जनपद सदस्य, कोटा (बिलासपुर)

जनपद सदस्य श्री जायसवाल की शिकायत पत्र को यह विभाग रद्दी की टोकरी में डालेगा या उसके आधार पर कोई जांच और कार्रवाई भी होगी, यह तो भविष्य के गर्त में है, लेकिन कोटा क्षेत्र में महिला बाल विकास विभाग की सेक्टर सुपरवाइजर द्वारा गड़बड़ी किये जाने की यह पहली शिकायत नहीं है। इससे पहले भी सेक्टर सुपरवाइजर द्वारा आंगनबाड़ी केंद्रों और महिला स्व-सहायता समूहों से वसूली की खबरें सामने आती रही हैं।

सोचने वाली बात यह है कि लगातार शिकायतों के बावजूद इस विभाग के आला अफसर आखिर किस मज़बूरी में सेक्टर सुपरवाइजरों के प्रति बचाव की मुद्रा में रहते हैं? आखिर क्यों वह घुमा-फिराकर किसी न किसी मानसेवीकर्मी के सर पर ठीकरा फोड़ने की फिराक में रहते हैं?

बिलासपुर जिले में कई सेक्टर सुपरवाइजर एक ही सेक्टर में जमी हुई हैं। उनका तबादला नहीं किया जा रहा है। जिला स्तर के अधिकारी तबादले की जिम्मेदारी को अक्सर संचालनालय अथवा शासन पर डाल देते हैं, लेकिन क्या एक सेक्टर से दूसरे सेक्टर में तबादला का अधिकार जिला स्तर के विभागीय अधिकारियों को नहीं है? एक ही सेक्टर में कई साल से कुंडली मारकर बैठीं कुछ सेक्टर सुपरवाइजर इतनी बेख़ौफ़ हो चुकीं हैं, कि वे मानसेवीं कर्मियों को प्रताड़ित करने तक से बाज नहीं आ रही हैं। जब पानी सर से ऊपर चला जाता है, और जब इनकी करतूतों के कारण जवाब देने में अफसरों की बोलती बंद हो जाती हैं, तब तबादले का अधिकार अचानक कहाँ से आ जाता है? गत दिनों एक एक सुपरवाइजर द्वारा आंगनबाड़ी कार्यकर्ता को प्रताड़ित किये जाने का एक मामला कलेक्टर कार्यालय तक पहुंचा है, जिस पर फिलहाल अभी तक किसी प्रकार की कार्रवाई की जानकारी नहीं मिली है।

वैसे देखा गया है कि, इतनी आसानी से सेक्टर सुपरवाइजर पर कार्रवाई करने अथवा तबादला करने की हिम्मत जिला स्तर के अधिकारी उठाते भी नहीं हैं। जब तक जिला कलेक्टर के स्तर पर प्रशासनिक फ़ज़ीहत की नौबत न आ जाए, तब तक महिला एवं बाल विकास विभाग के विभागीय अधिकारी सेक्टर सुपरवाइजर को बचाने के लिए हर जुगत अपनाते हैं, और गिरोह की तरह काम करते हैं।

लेकिन, वहीं जब कोई आंगनबाड़ी कार्यकर्ता/सहायिका इन सेक्टर सुपरवाइजरों की काली करतूतों में शामिल नहीं होना चाहती, अथवा उनकी कारगुजारियों को बेनकाब करने की कोशिश करती है, तो उसकी बर्खास्तगी के लिए पूरी स्क्रिप्ट तेजी से लिख ली जाती है। और नोटिस पर नोटिस देकर कार्रवाई के लिए पूरा ग्राउंड तैयार कर लिया जाता है।

कुछ सेक्टर सुपरवाइजरों के बारे चर्चा है, कि उनके सर पर एक जिला स्तरीय अधिकारी का मजबूत संरक्षण है, जिसके कारण वे न केवल बेख़ौफ़ हैं, बल्कि वे आंगनबाड़ीकर्मियों को टारगेट कर-करके कभी निरीक्षण में, तो कभी कामकाज में नुस्ख निकाल रही हैं। लेकिन जो आंगनबाड़ीकर्मी सेक्टर सुपरवाइजर की चम्मचगिरी बजाती हैं, उन्हें तमाम गलतियों के बावजूद छूट मिली हुई है। कुल जमा बात यही है, कि महिला एवं बाल विकास विभाग में खानापूर्ति जितनी अच्छी है, धरातल पर नज़ारे कुछ और हैं। और ऐसा तभी संभव है, जब इसमें कुछ बड़े पदों का संरक्षण होता है।

कोटा के एक केंद्र में 9 माह से भोजन वितरण नहीं हो रहा है, क्या यह बात उस सेक्टर सुपरवाइजर के सुपरविजन में कभी नहीं आयी? यदि आयी तो उन्होंने इसकी रिपोर्ट परियोजना अधिकारी को दी ? यदि रिपोर्ट दी, तो फिर क्या परियोजना अधिकारी की मेहरबानी के बिना 9 माह से यह खेल संभव था?

स्थानीय मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, कोटा के जनपद सदस्य अरविन्द जायसवाल ने न केवल शिकायत की है, बल्कि दोषियों पर कार्रवाई न होने के दशा में आंदोलन की बात भी मीडिया से कही है। देखने वाली बात होगी कि विभाग जनपद सदस्य की शिकायत को कितनी गंभीरता से लेता है, और साथ ही देखने वाली बात यह भी होगी की समुचित कार्रवाई न होने की स्थिति में जनपद सदस्य सही में आंदोलन करेंगे, या फिर यह सिर्फ गीदड़ भभकी है…? बहरहाल, आप शिकायत की पावती पढ़िए –

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