बिलासपुर • छत्तीसगढ़ सरकार की भव्य घोषणाओं के बीच, जहां मुख्यमंत्री विष्णु देव साय और उनकी टीम 2047 तक राज्य को ‘विकसित भारत’ का हिस्सा बनाने का दम भर रही है, वहीं न्यायधानी बिलासपुर शहर के इमलीभांठा इलाके में बूंद-बूंद पानी के लिए तरसते लोग विकास के इन दावों का मजाक उड़ा रहे हैं। वार्ड नंबर 65 के इस घनी आबादी वाले इलाके में पिछले 2-3 दिनों से पेयजल आपूर्ति पूरी तरह ठप हो चुकी है, जिससे वाल्मीकि आवास के शिव मंदिर गार्डन के आसपास के सैकड़ों परिवारों को नर्क जैसी जिंदगी जीनी पड़ रही है। यह समस्या नई नहीं है—यह तो नगर निगम बिलासपुर की लंबे समय से चली आ रही लापरवाही का नंगा चेहरा है, जो शहरी नागरिकों को मूलभूत सुविधाओं से वंचित रखने की उनकी नाकामी को बेनकाब कर रही है।

बार-बार की ठोकर: एक पुरानी बीमारी जो कभी ठीक नहीं हुई
इमलीभांठा का यह जल संकट कोई आकस्मिक घटना नहीं है। पिछले साल मार्च-अप्रैल में भी शहर के 12 से अधिक वार्डों, जिनमें इमलीभांठा भी शामिल था, में हैंडपंप सूख गए थे और पानी लुप्त हो गया था। तब भी लोगों को टैंकरों के इंतजार में घंटों लाइन लगानी पड़ी थी, और महिलाएं-बच्चे सुबह से शाम तक पानी की एक बाल्टी के लिए भटकते रहे। लेकिन नगर निगम ने क्या सीखा? कुछ नहीं। इस साल मई में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट को स्वतः संज्ञान लेना पड़ा था, जब पूरे शहर में जल संकट ने महामारी के रूप धारण कर लिया था। अदालत ने नगर निगम और लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग को फटकार लगाई, लेकिन आठ महीने बाद भी वही पुरानी कहानी दोहराई जा रही है।

नगर निगम की रिपोर्ट्स के मुताबिक, बिलासपुर में पाइपलाइन नेटवर्क पुराना और जर्जर हो चुका है। इमलीभांठा जैसे इलाकों में कई साल पुरानी पाइपलाइनें लीकेज का शिकार हैं, जिससे 30-40 प्रतिशत पानी रास्ते में ही बर्बाद हो जाता है। फिर भी, निगम का बजट—जो करोड़ों में है—मेंटेनेंस पर खर्च होने की बजाय प्रचार और फिजूलखर्ची पर उड़ जाता है। सितंबर की शुरुआत में हुई भारी बारिश ने तो हालात और बिगाड़ दिए थे, जब शहर के कई इलाकों में जलभराव हो गया और निगम की ड्रेनेज व्यवस्था फेल साबित हुई। तब पानी की बाढ़ थी, और अब सूखे का कहर—दोनों में निगम की एक ही भूमिका थी, वह थी तमाशबीन।
सरकारी दावों की पोल: विकास का सपना या धोखा?

छत्तीसगढ़ सरकार ‘हर घर नल-जल’ योजना के तहत दावा करती है कि 2023 तक पूरे राज्य में शुद्ध पेयजल पहुंचा दिया जाएगा, और 2047 तक तो ‘विकसित छत्तीसगढ़’ का सपना बुन रही है। लेकिन हकीकत यह है कि बिलासपुर जैसे प्रमुख शहर में आज भी 20-25 प्रतिशत आबादी पाइपलाइन से वंचित है। इमलीभांठा के निवासी मानते हैं कि सरकार, सरकारी अधिकारी और जन प्रतिनिधि यहाँ की समस्या को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं। यही कारण है कि यह समस्या सालों से बनीं हुईं है. यह वार्ड नंबर 65 भी बीजेपी के पार्षद का है, और शहर की सत्ता भी बीजेपी के हाथ में है—फिर भी पानी जैसी बुनियादी जरूरत पूरी नहीं हो रही।
और तो और, राज्य के नगरीय निकाय मंत्री, लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी मंत्री और उपमुख्यमंत्री अरुण साव बिलासपुर से ही ताल्लुक रखते हैं। केंद्र में शहरी आवास विभाग के केंद्रीय राज्य मंत्री तोकचंद साहू इस लोकसभा क्षेत्र के सांसद हैं। इन नेताओं के बावजूद, जब शहर की आधी आबादी पानी के लिए तरस रही है, तो विकास के दावे खोखले साबित होते हैं। हाल ही में सितंबर की भारी बारिश में 100 से अधिक घर जलमग्न हो गए थे, और निगम की जल निकासी व्यवस्था करोड़ों के खर्च के बावजूद फेल हो गई। अगर बेसिक इंफ्रास्ट्रक्चर ही ढह रहा है, तो ‘विकसित भारत’ का नारा कैसे साकार होगा?
लोगों की चीख: महिलाओं-बच्चों का दर्द अनदेखा

इमलीभांठा के वाल्मीकि आवास कॉलोनी में रहने वाले बताते हैं कि शिव मंदिर गार्डन के आसपास की पाइप लाइन में पिछले 2-3 दिनों से पानी नहीं आ रहा है। पंप चालू बंद करने वाला लोकल स्टॉफ कभी कहता है कि बिजली का एक फेस बंद है इसलिए पानी बंद है, कभी वह दूसरी समस्या का हवाला देकर निगम पर जिम्मेदारी डाल देता है. हर परिस्थिति में स्थानीय निवासियों को ही परेशान होना पड़ता है. नागरिक कहते हैं कि हम टैक्स देते हैं, वोट देते हैं, लेकिन बदले में क्या मिलता है? सिर्फ झूठे वादे। महिलाओं को दूर के नलों तक पैदल जाना पड़ रहा है, जो खुद सूख चुके हैं। यह न सिर्फ स्वास्थ्य संकट पैदा कर रहा है—जैसे डायरिया और त्वचा रोग—बल्कि सामाजिक असमानता को भी बढ़ावा दे रहा है, जहां गरीब बस्तियां सबसे ज्यादा प्रभावित हैं। लोगों ने बताया कि जो लोग समस्याओं को लेकर आवाज़ बुलंद करते हैं, उन्हें स्थानीय जनप्रतिनिधि अथवा निगम के लोकल अफसरों की नाराजगी का सामना करना पड़ता है. ऐसे में हम अपनी मुसीबत कहाँ बयां करें. नागरिकों ने बताया कि इस इलाके में 2-3 दिनों से पानी बंद है, गनीमत है कि 24 सितम्बर को एक घर में दशगात्र का कार्यक्रम था, जिसके लिए निगम ने बमुश्किल एक टैंकर भेजा गया था. उसी टैंकर के बाकी बचे पानी से अगले दिन यानी 25 सितम्बर को मोहल्ले के लोगों ने अपनी प्यास बुझाई. आखिर यह समस्या जनता किसके सामने बयां करें.
नगर निगम की नाकामी: जिम्मेदारी से भागना या साजिश?

नगर निगम बिलासपुर की यह लापरवाही अब संयोग नहीं, बल्कि सिस्टमेटिक फेलियर लग रही है। बजट आवंटन के बावजूद पाइपलाइन मरम्मत, नए बोरवेल और जलाशयों का रखरखाव न होना सवाल खड़े करता है। क्या फंड्स का दुरुपयोग हो रहा है? या फिर प्राथमिकताएं गलत हैं? हाईकोर्ट के आदेशों के बाद भी कोई ठोस कदम न उठाना निगम आयुक्त और पार्षदों की जवाबदेही पर सवालिया निशान लगाता है। अगर इमलीभांठा जैसे वार्डों में समस्या बनी रहेगी, तो पूरे शहर का जल प्रबंधन कैसे सुधरेगा? सरकार को चाहिए कि तत्काल टैंकरों की व्यवस्था करे, पुरानी पाइपलाइनों को अपग्रेड करे और पार्षदों पर कार्रवाई करे। अन्यथा, ये दावे सिर्फ चुनावी जुमले साबित होंगे।
शहरी नागरिकों को मूलभूत सुविधाएं देना सरकार की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है। बिलासपुर का यह संकट पूरे छत्तीसगढ़ के लिए चेतावनी है—कि विकास का सपना बिना बुनियादी जरूरतों के पूरा नहीं हो सकता। इमलीभांठा से उत्पन्न हो रही आवाज़ बताती है कि लोग अब चुप नहीं रहेंगे; वे सड़कों पर उतरने को तैयार हैं।

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