
छत्तीसगढ़, अपनी समृद्ध आदिवासी संस्कृति और प्राकृतिक सौंदर्य के लिए जाना जाता है, जहां दिवाली का त्योहार एक अनोखे रूप में मनाया जाता है। यहां दिवाली को ‘देवारी’ या ‘देवारी तिहार’ कहा जाता है, जो मुख्यधारा की दिवाली से अलग होते हुए भी प्रकाश के उत्सव का प्रतीक है। यह त्योहार गोंड आदिवासी समुदाय की गहरी जड़ों से जुड़ा है और ग्रामीण जीवन की खुशियों को दर्शाता है। देवारी न केवल रोशनी का पर्व है, बल्कि पशुपालन, कृषि और सामुदायिक बंधनों का जश्न भी है। आइए, देवारी की परंपराओं को समझें और इसके पौराणिक, ऐतिहासिक, सामाजिक तथा वैज्ञानिक पहलुओं पर नजर डालें।
देवारी की प्रमुख परंपराएं
छत्तीसगढ़ में देवारी कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाता है, जो हिंदू कैलेंडर के अनुसार दिवाली के साथ मेल खाता है। लेकिन यहां की परंपराएं स्थानीय आदिवासी प्रभाव से रंगी हुई हैं। मुख्य रिवाजों में शामिल हैं:
गौ-धन पूजा : पशुओं की पूजा की जाती है। गायों और बैलों पर फूलों की मालाएं (गैथा या चुई) बांधी जाती हैं और उन्हें विशेष भोजन दिया जाता है। बच्चे चावल के आटे से बने दीयों को जलाते हैं, जो समृद्धि का प्रतीक है।
चरवाहों का उत्सव : चरवाहे (यादव) समुदाय के लोग पशु मालिकों के लिए भोज आयोजित करते हैं। यह कृतज्ञता का प्रतीक है और सामुदायिक जुलूस में राउत नाचा (नृत्य) किया जाता है।
गौठान पूजा : पशुओं के आराम स्थल (गौठान) पर पूजा होती है, जहां शराब और बलि चढ़ाई जाती है। महिलाएं घर की दीवारों पर सुरक्षात्मक डिजाइन बनाती हैं।
तीन दिनों का जश्न : त्योहार तीन दिनों तक चलता है, जिसमें नृत्य, गीत और सामूहिक भोजन शामिल होता है। यह फसल कटाई के बाद विवाह मौसम की शुरुआत का संकेत भी देता है।
ये परंपराएं मुख्यधारा की दिवाली से अलग हैं, जहां लक्ष्मी पूजा और पटाखों पर जोर होता है, जबकि देवारी में पशुपालन और श्रम की पूजा प्रमुख है।
पौराणिक विशेषताएं
देवारी की जड़ें गोंड आदिवासी पौराणिक कथाओं में हैं। यह त्योहार गोंड देवताओं के पैंथियन में पहली पौराणिक शादी की याद दिलाता है – ईशर (इशर) और गौरा (गौरा या गौरी) की। कुपर लिंगो, जो गोंडों के सांस्कृतिक नायक माने जाते हैं, ने गोत्र प्रणाली स्थापित की थी, जिसमें 750 गोत्रों को 12 पूर्वजों में विभाजित किया गया ताकि अनाचार रोका जा सके।
यह कथा शंभू (एक नेता और सलाहकार) से जुड़ी है, जो ईशर और गौरा को ऐतिहासिक शंभू और गबरा से जोड़ती है। देवारी बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है, लेकिन गोंड संदर्भ में यह औपचारिक विवाह संस्था की स्थापना का उत्सव है। मुख्य दिवाली की रामायण आधारित कथा (राम की अयोध्या वापसी) से अलग, देवारी आदिवासी मिथकों पर आधारित है।
ऐतिहासिक विशेषताएं
ऐतिहासिक रूप से, देवारी छत्तीसगढ़ के ग्रामीण और आदिवासी इतिहास से जुड़ा है। यह त्योहार प्राचीन गोंड साम्राज्य की सांस्कृतिक विरासत को दर्शाता है, जहां पशुपालन और कृषि जीवन का आधार थे। फसल कटाई के बाद मनाया जाने वाला यह उत्सव विवाह मौसम की शुरुआत करता है, जो अक्टि बिहाउ तक चलता है।
चरवाहा समुदाय (यादव) की भूमिका महत्वपूर्ण है, जो प्राचीन काल से पशुधन की देखभाल करते आए हैं। त्योहार में राजा नारायण को चढ़ावा चढ़ाना भी शामिल है, जो स्थानीय राजवंशों से जुड़े ऐतिहासिक तत्वों को इंगित करता है। आधुनिक कैलेंडर से पहले, माटी पुजारी (पृथ्वी पूजक) तिथि निर्धारित करते थे, जो प्राचीन परंपराओं की निरंतरता दिखाता है।
सामाजिक विशेषताएं
सामाजिक दृष्टि से, देवारी समुदाय की एकता और श्रम की गरिमा का प्रतीक है। चरवाहे पशु मालिकों को भोज देकर कृतज्ञता व्यक्त करते हैं, जो सामाजिक बंधनों को मजबूत करता है। त्योहार गांव स्तर पर कल्याण की कामना करता है, जिसमें नृत्य, गीत और जुलूस शामिल होते हैं।
यह आदिवासी संस्कृति को संरक्षित रखता है, जहां महिलाओं की भूमिका (दीवार चित्रण) और बच्चों की भागीदारी (दीये जलाना) महत्वपूर्ण है। देवारी विवाह मौसम की शुरुआत के रूप में सामाजिक मिलन को बढ़ावा देता है, और यह ग्रामीण-शहरी विभाजन को उजागर करता है – जहां मुख्य दिवाली व्यावसायिक है, देवारी सामुदायिक और सादगीपूर्ण।
वैज्ञानिक विशेषताएं
वैज्ञानिक रूप से, देवारी कृषि और पशुपालन चक्र से जुड़ा है। फसल कटाई के बाद मनाया जाना मौसम विज्ञान से मेल खाता है, जहां पशुओं को आराम और पोषण दिया जाता है। मुख्य दिवाली का वैज्ञानिक पहलू ब्राउन प्लांटहॉपर जैसे कीटों को नियंत्रित करने के लिए दीये जलाना है, जो चावल की फसल को बचाता है – यह परंपरा देवारी में भी मौजूद है।
इसके अलावा, त्योहार पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देता है, जैसे पशुओं की देखभाल और प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग (फूल, आटा दीये)। आधुनिक संदर्भ में, यह सतत विकास का उदाहरण है, जहां सामुदायिक रीतियां स्वास्थ्य और उत्पादकता को बनाए रखती हैं।
छत्तीसगढ़ की देवारी दिवाली का एक अनोखा रूप है, जो आदिवासी विरासत को जीवंत रखता है। यह त्योहार न केवल रोशनी का उत्सव है, बल्कि जीवन, श्रम और समुदाय की विजय का प्रतीक भी। पौराणिक कथाओं से लेकर वैज्ञानिक तर्कों तक, देवारी छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक विविधता को दर्शाता है। इस त्योहार को संरक्षित रखना हमारी साझा विरासत की रक्षा है।

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