छत्तीसगढ़ में दशहरा : राम का ननिहाल और विजयादशमी की अमर परंपराएँ

HomeMP-Chhattisgarh

छत्तीसगढ़ में दशहरा : राम का ननिहाल और विजयादशमी की अमर परंपराएँ

विजयादशमी, जिसे दशहरा या दसहरा के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म का एक प्रमुख पर्व है जो बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है। यह पर्व मुख्य रूप से भगवान राम की रावण पर विजय और देवी दुर्गा की महिषासुर पर जीत का उत्सव मनाता है। पूरे भारत में यह त्योहार विभिन्न रूपों में मनाया जाता है, लेकिन छत्तीसगढ़ राज्य के लिए यह विशेष महत्व रखता है। यहां न केवल रामायण से जुड़ी प्राचीन किंवदंतियां और स्थल जीवंत हैं, बल्कि राज्य को भगवान राम का ननिहाल माना जाता है। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने इसे “प्रभु श्री राम का मातृभूमि” कहा है, क्योंकि राम की माता कौशल्या का जन्म इसी भूमि पर हुआ था।

छत्तीसगढ़ को प्राचीन काल में दक्षिण कोसल के नाम से जाना जाता था, और यहां की भूमि राम की माता कौशल्या से गहराई से जुड़ी है। रायपुर जिले के चंदखुरी गांव में स्थित माता कौशल्या मंदिर दुनिया का एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां कौशल्या को मुख्य देवी के रूप में पूजा जाता है, और उन्हें बाल रूप में राम को गोद में लिए दर्शाया गया है। मान्यता है कि कौशल्या का जन्म इसी क्षेत्र में हुआ था, इसलिए छत्तीसगढ़ को राम का ननिहाल कहा जाता है। स्थानीय परंपराओं में यह विश्वास प्रबल है कि राम ने अपना बचपन का कुछ समय ननिहाल में बिताया, जहां वे अपनी नानी के घर खेलते-कूदते बड़े हुए। छत्तीसगढ़ के लोग राम को अपने भांजे के रूप में देखते हैं, और यहां की एक प्रथा है कि भांजे अपने मामा के पैर छूते हैं, जिसे राम से जोड़ा जाता है।

यह कनेक्शन रामायण की कहानियों को यहां की मिट्टी से जोड़ता है। राज्य सरकार ने चंदखुरी को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया है, जहां मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया है, और यह अब अयोध्या के राम मंदिर की शैली से प्रेरित है। विजयादशमी के दिन यहां विशेष पूजा-अर्चना होती है, जो राम की विजय को उनकी मातृभूमि से जोड़ती है।

रामायण के अनुसार, भगवान राम ने अपने 14 वर्षीय वनवास के 10 वर्ष छत्तीसगढ़ के जंगलों में बिताए, जो उस समय दंडकारण्य के नाम से जाना जाता था। राज्य सरकार द्वारा विकसित “राम वन गमन पर्यटन परिपथ” में 75 से अधिक स्थल चिह्नित किए गए हैं, जहां राम, सीता और लक्ष्मण के पदचिह्न माने जाते हैं। इनमें से कुछ प्रमुख स्थल हैं:

सितामढ़ी-हरचौका (कोरिया जिला): राम का छत्तीसगढ़ में प्रवेश द्वार। यहां गुफाओं में राम ने शिव पूजा की, और सीता ने भोजन बनाया।

रामगढ़ (सरगुजा जिला): रामगिरी पर्वत पर राम और सीता ने निवास किया। यहां की गुफाओं में विश्व की सबसे प्राचीन शैल चित्रकला है।

शिवरीनारायण (जांजगीर-चांपा जिला): यहां शबरी माता ने राम को चखे हुए बेर खिलाए। शबरी शबर जनजाति से थीं, जो आज भी छत्तीसगढ़ में निवास करती हैं।

तुरतुरीया (बलोदा बाजार जिला): महर्षि वाल्मीकि का आश्रम, जहां लव और कुश का जन्म हुआ।

रामाराम (सुकमा जिला): राम के पदचिह्न यहां के पहाड़ पर हैं, जहां उन्होंने भूमि देवी की पूजा की।

ये स्थल विजयादशमी पर विशेष रूप से सजाए जाते हैं, जहां राम की विजय की कथाएं सुनाई जाती हैं। आदिवासी समुदायों में राम से जुड़ी लोक कथाएं प्रचलित हैं, जैसे रामनामी समुदाय जो राम का नाम अपने शरीर पर गुदवाते हैं और राम को अपना देवता मानते हैं। ये कथाएं रामायण को स्थानीय संस्कृति से जोड़ती हैं, जहां राम को न केवल योद्धा बल्कि एक पारिवारिक सदस्य के रूप में देखा जाता है।

छत्तीसगढ़ में विजयादशमी का उत्सव पूरे देश से अलग है, खासकर बस्तर क्षेत्र में। यहां का बस्तर दशहरा दुनिया का सबसे लंबा दशहरा है, जो 75 दिनों तक चलता है और राम-रावण की बजाय स्थानीय आदिवासी देवी दंतेश्वरी को समर्पित है। यह उत्सव रथ यात्राओं, आदिवासी नृत्यों और बलिदानों से भरा होता है, जो राज्य की स्वदेशी पहचान को दर्शाता है। हालांकि यह सीधे रामायण से जुड़ा नहीं, लेकिन राम के वनवास के दौरान बस्तर के जंगलों (जैसे जगदलपुर के चित्रकोट जलप्रपात) में बिताए समय से अप्रत्यक्ष रूप से संबंधित है, जहां राम ने शिव और पार्वती से भेंट की।

राज्य के अन्य हिस्सों में विजयादशमी पर रामलीला का मंचन होता है, रावण दहन किया जाता है, और राम वन गमन स्थलों पर विशेष आयोजन होते हैं। यह पर्व यहां राम की पारिवारिक विरासत और विजय दोनों को जोड़ता है, जिससे यह छत्तीसगढ़वासियों के लिए भावनात्मक रूप से खास बन जाता है।

विजयादशमी छत्तीसगढ़ के लिए सिर्फ एक त्योहार नहीं, बल्कि राम की जड़ों से जुड़ी सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक है। राम का ननिहाल होने से लेकर वनवास की कहानियों तक, यह राज्य रामायण का जीवंत हिस्सा है। इन तथ्यों से स्पष्ट है कि छत्तीसगढ़ में यह पर्व बुराई पर अच्छाई की विजय को न केवल धार्मिक बल्कि पारिवारिक और ऐतिहासिक संदर्भ में मनाता है। आज के दौर में राम वन गमन पथ जैसे प्रयास इस विरासत को संरक्षित कर रहे हैं, जो पर्यटकों और श्रद्धालुओं को राम की यात्रा का अनुभव कराते हैं। इस प्रकार, विजयादशमी यहां की मिट्टी में रची-बसी राम की कहानियों को नया जीवन देती है।

विनोद डोंगरे

COMMENTS

WORDPRESS: 0
DISQUS: