करवा चौथ : छत्तीसगढ़ से जुड़ी है इसकी अनोखी कहानी, जो शायद आपने नहीं सुनी

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करवा चौथ : छत्तीसगढ़ से जुड़ी है इसकी अनोखी कहानी, जो शायद आपने नहीं सुनी



आज, 10 अक्टूबर 2025 को, हिंदू कैलेंडर के अनुसार कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष चतुर्थी को मनाया जाने वाला पवित्र पर्व करवा चौथ आगमन कर चुका है। यह त्योहार मुख्य रूप से उत्तर भारत और मध्य भारत के राज्यों में उत्साह के साथ मनाया जाता है, जहां विवाहित महिलाएं अपने पतियों की लंबी आयु और सुख-समृद्धि के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। यह न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि वैवाहिक प्रेम और समर्पण का भी प्रतीक है। इस लेख में हम करवा चौथ के हिंदू धर्म और परंपरा में महत्व, पूजा विधि, फायदों तथा छत्तीसगढ़ राज्य से जुड़ी एक किंवदंति पर चर्चा करेंगे।

हिंदू धर्म और परंपरा में करवा चौथ का महत्व

हिंदू धर्म में करवा चौथ को वैवाहिक जीवन की पवित्रता और पत्नी के पति के प्रति अटूट समर्पण का प्रतीक माना जाता है। यह व्रत कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को रखा जाता है, जब चंद्रमा की कलाएं धीरे-धीरे बढ़ने लगती हैं, जो वैवाहिक जीवन में उज्ज्वलता और समृद्धि का संकेत देती हैं। परंपरा के अनुसार, विवाहित महिलाएं सूर्योदय से चंद्रोदय तक निर्जला उपवास रखती हैं, जो उनके पतियों की सुरक्षा, दीर्घायु और कल्याण के लिए समर्पित होता है।

यह पर्व प्राचीन हिंदू ग्रंथों और लोककथाओं से जुड़ा है, जहां पत्नी को ‘अर्धांगिनी’ (पति का आधा अंग) माना जाता है। करवा चौथ न केवल पति-पत्नी के बीच प्रेम को मजबूत करता है, बल्कि सामाजिक स्तर पर महिलाओं की एकजुटता को भी दर्शाता है। महिलाएं एकत्र होकर करवा (मिट्टी का छोटा घड़ा) भरकर एक-दूसरे को सौगात देती हैं, जो सामूहिक भक्ति और सौहार्द का प्रतीक है। आधुनिक संदर्भ में यह त्योहार रोमांटिक उत्सव के रूप में भी जाना जाता है, जो वैवाहिक बंधन की मधुरता को रेखांकित करता है। हिंदू परंपरा में यह व्रत पार्वती, शिव और गणेश की पूजा से जुड़ा है, जो सुखी गृहस्थ जीवन की कामना को पूरा करता है।

करवा चौथ की पूजा विधि:

करवा चौथ की पूजा सरल लेकिन भावपूर्ण होती है। इसे विधिपूर्वक करने से व्रत का फल अवश्य प्राप्त होता है। नीचे स्टेप-बाय-स्टेप विधि दी गई है:

1. सुबह की तैयारी और संकल्प : ब्रह्म मुहूर्त (सूर्योदय से पहले) में उठें, स्नान करें और शुभ मुहूर्त में सरगी (व्रत से पहले हल्का भोजन) ग्रहण करें। फिर सूर्य देव को जल अर्पित कर व्रत का संकल्प लें। हाथ में फूल और चावल लेकर माता पार्वती और भगवान शिव के समक्ष संकल्प करें।

2. दोपहर की पूजा : दोपहर में गणेश जी, माता पार्वती और शिव जी की स्थापना करें। चौकी पर गौरी-शिव की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। गौरी को लकड़ी के आसन पर बिठाएं, चौक बनाकर आसन रखें, चुनरी ओढ़ाएं और सुहाग सामग्री (बिंदी, सिंदूर आदि) से श्रृंगार करें। जल से भरा लोटा रखें।

3. शाम की मुख्य पूजा : सूर्यास्त के बाद करवा (मिट्टी का घड़ा) में जल भरें, जिसमें रोली, चंदन, फूल, मिठाई आदि डालें। सात प्रकार के अनाज, फल और सूखे मेवे रखें। पूजा स्थल पर करवा माता, चंद्र देव और शिव-पार्वती की पूजा करें। महिलाएं एक-दूसरे के करवे फेरती हैं (करवा को सात बार घुमाना)।

4. कथा पाठ : पूजा के दौरान करवा चौथ की कथा सुनें या पढ़ें। कथा समाप्ति पर आरती करें।

5. चंद्रोदय और व्रत उद्घाटन : चंद्रमा उदय होने पर छलनी से चंद्र दर्शन करें, जल अर्घ्य दें। फिर पति के हाथ से जल ग्रहण कर व्रत तोड़ें। पति भी पत्नी को मीठा खिलाएं।

पूजा सामग्री में करवा, छलनी, सिंदूर, बिंदी, फूल, चंदन, धूप-दीप, मिठाई आदि शामिल होते हैं।

करवा चौथ व्रत के लाभ

करवा चौथ का व्रत न केवल आध्यात्मिक लाभ देता है, बल्कि शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी है। मुख्य लाभ निम्नलिखित हैं:

वैवाहिक बंधन मजबूत : यह व्रत पति-पत्नी के बीच प्रेम, विश्वास और समझ को बढ़ाता है। संयुक्त रूप से पूजा-अर्चना करने से पारिवारिक संबंध सशक्त होते हैं।

स्वास्थ्य लाभ : निर्जला उपवास शरीर से विषाक्त पदार्थों को निकालता है, पाचन तंत्र को आराम देता है और मस्तिष्क कार्यक्षमता में सुधार करता है। आयुर्वेद के अनुसार, यह डिटॉक्सिफिकेशन प्रक्रिया को बढ़ावा देता है।

आध्यात्मिक शांति : व्रत रखने से मन की शुद्धि होती है, भक्ति भाव जागृत होता है और जीवन में सुख-शांति की प्राप्ति होती है। महिलाओं के लिए यह आत्म-अनुशासन और समर्पण का स्रोत बनता है।

सामाजिक एकजुटता : महिलाओं की सामूहिक भागीदारी से सामाजिक बंधन मजबूत होते हैं, जो त्योहार को सांस्कृतिक धरोहर बनाता है।

छत्तीसगढ़ राज्य से जुड़ी करवा चौथ की किंवदंति

छत्तीसगढ़ में करवा चौथ को पारंपरिक उत्साह के साथ मनाया जाता है, जहां लोककथाओं का विशेष महत्व है। यहां की एक प्रसिद्ध किंवदंति रानी वीरावती से जुड़ी है, जो छत्तीसगढ़ी लोक संस्कृति में भी प्रचलित है। कथा के अनुसार, प्राचीन काल में छत्तीसगढ़ के एक राजा की सात भाइयों वाली पुत्री वीरावती थी। विवाह के बाद पहली बार करवा चौथ का व्रत रखते हुए वह भूख-प्यास से व्याकुल हो गई। उसके भाई, जो उसे बहुत प्रेम करते थे, ने चंद्रोदय का भ्रम पैदा करने के लिए मिट्टी का दीपक जलाकर छलनी से दिखाया। वीरावती ने जल्दी व्रत तोड़ लिया, लेकिन पति की मृत्यु हो गई। दुखी होकर वह यमराज के पास पहुंची, जिन्होंने बताया कि अधूरी पूजा के कारण ऐसा हुआ। वीरावती ने पुनः पूर्ण विधि से व्रत रखा, जिससे पति को जीवन मिला।

यह कथा छत्तीसगढ़ के ग्रामीण इलाकों में मौखिक रूप से सुनाई जाती है, जो महिलाओं को व्रत की पूर्णता का संदेश देती है। यहां महिलाएं स्थानीय लोकगीतों के साथ करवा फेरती हैं, जो राज्य की सांस्कृतिक विविधता को दर्शाता है।

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