
भारत की सांस्कृतिक और सामाजिक परंपराओं में त्योहार और राष्ट्रीय दिवस अक्सर गहरे अर्थों से जुड़े होते हैं, लेकिन जब दो महत्वपूर्ण अवसर एक ही दिन पड़ते हैं, तो यह एक अनोखा संयोग बन जाता है। वर्ष 2025 में 2 अक्टूबर को दशहरा (विजयादशमी) और गांधी जयंती का यह दुर्लभ संयोग देखने को मिलेगा। दशहरा हिंदू धर्म का प्रमुख त्योहार है, जो भगवान राम की रावण पर विजय का प्रतीक है, जबकि गांधी जयंती महात्मा गांधी के जन्मदिन के रूप में मनाई जाती है, जो अहिंसा और सत्याग्रह के माध्यम से ब्रिटिश साम्राज्यवाद पर विजय का प्रतीक है। यह संयोग न केवल कैलेंडर की संयोगवश घटना है, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक स्तर पर गहन अर्थ रखता है, जहां बुराई पर अच्छाई की जीत का विषय दोनों में समान रूप से प्रतिबिंबित होता है।
दशहरा हिंदू चंद्र कैलेंडर के अश्विन मास की शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है, जो ग्रेगोरियन कैलेंडर में हर वर्ष अलग-अलग तिथियों पर पड़ता है। यह त्योहार रामायण महाकाव्य से जुड़ा है, जहां भगवान राम ने लंका के राजा रावण का वध किया, जो अधर्म और अत्याचार का प्रतीक था। गोस्वामी तुलसीदास कृत रामचरितमानस में इस विजय का वर्णन करते हुए कहा गया है: “रावन मारि सुरन्ह सुख दीन्हा। स्वयं प्रगट भए रामु गृह कीन्हा।” यह पंक्ति रावण के वध के बाद देवताओं को मिले सुख और राम की विजय को दर्शाती है। दूसरी ओर, गांधी जयंती एक निश्चित तिथि पर आधारित है – 2 अक्टूबर 1869 को मोहनदास करमचंद गांधी का जन्म हुआ था। गांधी ने भारत की स्वतंत्रता संग्राम में अहिंसा को हथियार बनाकर साम्राज्यवाद की ‘बुराई’ पर विजय प्राप्त की।
2025 में यह संयोग इसलिए संभव हो रहा है क्योंकि चंद्र कैलेंडर की दशमी तिथि ग्रेगोरियन कैलेंडर के 2 अक्टूबर से मेल खाती है। ऐसे संयोग दुर्लभ नहीं हैं, लेकिन वे भारतीय समाज में विशेष उत्साह पैदा करते हैं। उदाहरण के लिए, 2019 में भी दशहरा 8 अक्टूबर को पड़ा था, लेकिन 2025 का यह संयोग गांधी जयंती के साथ सीधा जुड़ाव रखता है, जो राष्ट्रीय छुट्टी के रूप में दोनों को एक साथ मनाने का अवसर प्रदान करता है। यह कैलेंडर की गणना पर आधारित तथ्य है, जो हिंदू पंचांग और आधुनिक कैलेंडर के मिश्रण को दर्शाता है।
सांस्कृतिक दृष्टि से, दशहरा और गांधी जयंती दोनों में ‘विजय’ का मूल विषय है, जो बुराई पर अच्छाई की जीत को रेखांकित करता है। दशहरा में रावण दहन की परंपरा होती है, जहां रावण की विशाल प्रतिमाओं को जलाया जाता है, जो अहंकार, लालच और अन्याय के अंत का प्रतीक है। रामायण के अनुसार, राम की विजय सत्य, धर्म और न्याय पर आधारित थी। रामचरितमानस के लंकाकांड में इस भाव को व्यक्त करते हुए तुलसीदास जी लिखते हैं: “जय राम रघुपति भगवाना। जय रघुनंदन जन सुख दाना।” यह पंक्ति राम की विजय और जन सुख प्रदान करने वाले रूप को उजागर करती है। इसी प्रकार, गांधी की विचारधारा अहिंसा (non-violence) और सत्य (truth) पर टिकी थी, जिसने उन्हें ‘राष्ट्रपिता’ का दर्जा दिलाया। गांधी जी ने कहा था, “मेरा धर्म सत्य और अहिंसा पर आधारित है। सत्य मेरा भगवान है, अहिंसा उसे पाने का साधन।” गांधी ने दांडी मार्च (1930) और भारत छोड़ो आंदोलन (1942) जैसे अभियानों से ब्रिटिश शासन की ‘रावण-सदृश’ नीतियों पर विजय प्राप्त की, बिना हिंसा का सहारा लिए।
यह संयोग सांस्कृतिक रूप से इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि दोनों भारतीय पहचान के अभिन्न अंग हैं। दशहरा धार्मिक उत्सव है, जो नवरात्रि के बाद आता है और दुर्गा पूजा से जुड़ा होता है, जहां मां दुर्गा ने महिषासुर पर विजय प्राप्त की। गांधी जयंती, हालांकि धर्मनिरपेक्ष है, लेकिन गांधी के राम राज्य (रामराज्य) के आदर्श से प्रेरित है, जहां न्याय और समानता सर्वोपरि हैं। गांधी जी ने रामराज्य के बारे में कहा, “रामराज्य का अर्थ है ऐसा राज्य जहां सबसे कमजोर व्यक्ति को भी न्याय मिले और वह अपनी आवाज उठा सके।” तार्किक रूप से, यह संयोग भारतीय संस्कृति की विविधता को दर्शाता है, जहां पौराणिक कथाएं और आधुनिक इतिहास एक-दूसरे से जुड़ते हैं। ऐसे में, लोग दशहरा के जुलूसों में गांधी के सिद्धांतों को शामिल कर सकते हैं, जैसे अहिंसा का संदेश देते हुए रावण दहन।
सामाजिक स्तर पर, यह संयोग भारत की एकता और नैतिक मूल्यों को मजबूत करता है। दशहरा ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में मनाया जाता है, जहां मेले, नाटक (रामलीला) और सामुदायिक उत्सव होते हैं। यह सामाजिक सद्भावना को बढ़ावा देता है, क्योंकि विभिन्न जातियों और समुदायों के लोग एक साथ भाग लेते हैं। रामचरितमानस में इस एकता को दर्शाते हुए एक पंक्ति है: “सकल लोक जग पावन करि, रामु भयउ जगदीस।” जो राम की विजय से पूरे जगत के पावन होने का संदेश देती है। गांधी जयंती पर स्कूलों, कार्यालयों और सार्वजनिक स्थलों पर कार्यक्रम होते हैं, जहां स्वच्छता अभियान, भाषण और गांधी के जीवन पर चर्चा की जाती है। गांधी जी ने सामाजिक एकता पर कहा, “सत्य की विजय हमेशा होती है, लेकिन वह सरल नहीं होती; उसे प्राप्त करने के लिए अहिंसा का मार्ग अपनाना पड़ता है।” जब दोनों एक ही दिन पड़ते हैं, तो यह एक राष्ट्रीय छुट्टी बन जाती है, जो सामाजिक एकीकरण को प्रोत्साहित करती है।
तथ्यपूर्ण रूप से, गांधी ने खुद रामायण से प्रेरणा ली थी। उन्होंने ‘रामराज्य’ को आदर्श शासन के रूप में देखा, जहां कोई भेदभाव नहीं होता। सामाजिक दृष्टि से, दशहरा जाति-व्यवस्था और अन्याय के खिलाफ लड़ाई का प्रतीक है, जबकि गांधी ने अस्पृश्यता (untouchability) और सांप्रदायिक सद्भाव के लिए संघर्ष किया। यह संयोग सामाजिक सुधारों को याद दिलाता है, जैसे गांधी का हरिजन आंदोलन और दशहरा की परंपरा में महिलाओं की भागीदारी (दुर्गा पूजा के माध्यम से)। आज के संदर्भ में, जब भारत सामाजिक मुद्दों जैसे गरीबी, हिंसा और पर्यावरण प्रदूषण से जूझ रहा है, यह संयोग अहिंसा और न्याय के संदेश को दोहराता है। उदाहरण के लिए, कई स्थानों पर दशहरा के दौरान पर्यावरण-अनुकूल रावण दहन किया जाता है, जो गांधी के स्वच्छता अभियान से मेल खाता है।
दशहरा और गांधी जयंती का 2 अक्टूबर 2025 को संयोग न केवल एक कैलेंडर घटना है, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक स्तर पर एक प्रतीकात्मक मिलन है। यह हमें याद दिलाता है कि अच्छाई की विजय हमेशा संभव है, चाहे वह पौराणिक युद्ध हो या आधुनिक अहिंसक संघर्ष। रामचरितमानस की पंक्तियों और गांधी जी के उद्धरणों से स्पष्ट है कि सत्य और अहिंसा ही अंतिम विजय के साधन हैं। ऐसे संयोग भारतीय समाज को एकजुट करते हैं, जहां धार्मिक उत्सव और राष्ट्रीय गौरव एक साथ मनाए जाते हैं। अंततः, यह हमें प्रेरित करता है कि बुराई का अंत करने के लिए हिंसा की नहीं, बल्कि सत्य और अहिंसा की आवश्यकता है – एक ऐसा संदेश जो राम और गांधी दोनों के जीवन से निकलता है।

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