आंगनबाड़ी : कहीं कार्यकर्ता प्रताड़ित, तो कहीं सहायिका से मारपीट…न्यायधानी का हाल-बेहाल

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आंगनबाड़ी : कहीं कार्यकर्ता प्रताड़ित, तो कहीं सहायिका से मारपीट…न्यायधानी का हाल-बेहाल

बिलासपुर. एक आंगनबाड़ी केंद्र में रखे डीजे के सामान के गिरने और उसकी चपेट में आकर एक मासूम बच्ची की मौत के मामले में हाईकोर्ट की फटकार की खबर को लोग अभी भूले भी नहीं हैं, इधर दूसरी ख़बरों ने भी दस्तक देना शुरू कर दिया है. किसी आंगनबाड़ी केंद्र की कार्यकर्ता ने अपनी ही सहायिका को थप्पड़ जड़ दिया है, तो किसी केंद्र की सहायिका ने अपने ही केंद्र की कार्यकर्ता के नाक में दम कर रखा है. कुछ केंद्रों में पोषण आहार और गरम भोजन वितरण में गड़बड़ी सामने आ रहीं है, तो कहीं समय से केंद्र में ताला जड़कर आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और सहायिका केंद्र से नदारद हो जा रही हैं. सवाल उठता है कि केंद्र के सुचारू संचालन की देख रेख के लिए जिन सुपरवाइजरों की नियुक्ति की गयी है, वे आखिर किस चीज का सुपरविजन कर रही हैं.

जानकारी मिली है कि बिलासपुर शहरी परियोजना क्षेत्र के एक आंगनबाड़ी केंद्र में कार्यरत सहायिका ने परियोजना अधिकारी को पत्र लिखकर शिकायत की है कि गैस सिलिंडर को और आलू बड़ी आदि को लेकर शुरू हुए विवाद में आँगनबाड़ी कार्यकर्ता ने सहायिका से मारपीट की है. यह घटना अगस्त माह की बतायी जा रही है.

इसी तरह शहरी परियोजना में ही एक आँगनबाड़ी सहायिका के सम्बन्ध में उसी केंद्र की सहायिका ने शिकायत की है कि वह कार्यकर्ता की बात नहीं मानती, उल्टा झगड़े-लड़ाई पर उतारू हो जाती है. इससे केंद्र के संचालन में दिक्कत आ रही है.

एक अन्य मामले में कार्यकर्ता ने अपने सेक्टर की सुपरवाइजर पर प्रताड़ना का आरोप लगाया है. कार्यकर्ता का कहना है कि उसे निशाना बनाते हुए इरादातन नोटिस जारी किया जाता है, क्योंकि वह सुपरवाइजर के गलत निर्देशों का विरोध करती रही है और एक आंगनबाड़ीकर्मी संगठन से जुडी हुईं है. यह सारा कुछ बिलासपुर शहरी परियोजना के ही केंद्रों का मामला है.

क्या है अव्यवस्था की वजह

महिला एवं बाल विकास विभाग में कार्यरत सुपरवाइजरों का लम्बे समय से तबादला नहीं हुआ है. कई सुपरवाइजर एक ही सेक्टर में कुंडली मारकर कई सालों से बैठी हैं. उनका रसूख ऐसा है कि अधिकारी भी कुछ नहीं कर पा रहे हैं. ये सुपरवाइजर काम के नाम पर सिर्फ पोषण ट्रैकर एप्प में एंट्री, प्रतिदिन समय पर फोटो अपलोडिंग और पंजी संधारण पर ही फोकस हैं. निरीक्षण भी इन्हीं चीजों का पहले होता है. जमीनी तौर पर योजनाओं को समुचित रूप से लागू कराने अथवा आंगनबाड़ीकर्मियों के बीच सामंजस्य स्थापित करने में उनकी कोई दिलचस्पी नहीं है. एक सुपरवाइजर पर तो यहां तक आरोप है कि वह अपने ही सेक्टर की सहायिका से मिलीभगत कर कार्यकर्ता के पीछे पड़ गयी है. अपने ही सेक्टर के कई आंगनबाड़ी केंद्रों में ताला लटकने और पिछले दिनों के भोजन वितरण के फोटो को दोबारा अपलोड कर दिए जाने के मामले को नज़रअंदाज कर रहीं है, लेकिन जिस आंगनबाड़ी कार्यकर्ता को निशाने पर लिया है, उसके केंद्र में सुबह से लेकर छुट्टी के समय तक बैठकर एक-एक चीज़ में मीन-मेख निकालते हुए नोटिस जारी करने का कारण ढूंढ रहीं है, क्योंकि उस कार्यकर्ता ने पहले ही प्रताड़ना की शिकायत की है.

क्यों मौन हैं अधिकारी

हाईकोर्ट की फटकार के बावज़ूद आखिर विभाग के अधिकारी इन सभी परिस्थितियों के प्रति मूकदर्शक क्यों बने बैठे हैं, या फिर कुछ चुनिंदे सुपरवाइजरों पर उनका विशेष संरक्षण है, यह सोचनीय है. आखिर सेक्टर स्तर पर जो तबादले जिले के अंतर्गत किए जा सकते हैं, वह भी जिला स्तर के अधिकारी क्यों नहीं करते..? प्रताड़ना और अव्यवस्था की शिकायत के बवाज़ूद सुपरवाइजरों के विरुद्ध जांच और कार्रवाई में इतनी सुस्ती, लेकिन मानसेवीकर्मी को बात बात पर नोटिस देने पर अमादा विभाग क्या इन बातों के लिए भी हाई कोर्ट की अगली फटकार का इंतज़ार कर रहा है, यह सोचने वाली बात है.

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